
महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर 'मराठी अस्मिता' की लहर में डूबती नजर आ रही है। इस बार मोर्चा संभाला है MNS प्रमुख राज ठाकरे के बेटे Amit Thackeray ने मराठी भाषा के सम्मान और अधिकार की लड़ाई को नया स्वरूप देते हुए DCM Eknath Shinde, CM Devendra Fadnvis, शिक्षा मंत्री Dada Bhuse और उच्च व तकनीकी शिक्षा मंत्री Chandrkant Patil समेत सभी संबंधित अधिकारियों को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा है। इस ज्ञापन में उन्होंने जोर देते हुए कहा है की अब वक्त आ गया है की महाराष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत, स्वाभिमान और भाषाई पहचान को औपचारिक रूप से सम्मान मिले। अमित ठाकरे की मांग है की राज्य के हर स्कूल और कॉलेज के प्रवेशद्वार पर मराठी भाषा में, स्पष्ट और बड़े अक्षरों में संस्थान का नाम लिखा जाना अनिवार्य किया जाए।
'मराठी को मिला है अभिजात भाषा का दर्जा, फिर भी उपेक्षित क्यों?'
ज्ञापन में Amit Thackeray ने यह भी प्रश्न उठाया कि जब केंद्र सरकार ने मराठी को 'अभिजात भाषा' का दर्जा दे दिया है, तो फिर राज्य सरकार इस दिशा में ठोस कदम क्यों नहीं उठा रही? उनका मानना है की जमीनी स्तर पर मराठी भाषा को वह पहचान नहीं मिल रही जिसकी वह सच्चे मायनों में अधिकारी है। अमित ठाकरे ने इस मुद्दे को सिर्फ भाषाई नहीं, बल्कि भावनात्मक और सामाजिक आत्मबल से जोड़ते हुए कहा, “यह सिर्फ नामपट की बात नहीं है, यह मराठी जनमानस के सम्मान, अस्मिता और आत्मबल की बात है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया की यह पहल राजनीति से ऊपर उठकर मराठी संस्कृति और युवाओं की पहचान को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है की अमित ठाकरे की यह पहल एक ओर जहां मराठी भाषियों के बीच मनसे को पुनः प्रासंगिक बना सकती है, वहीं दूसरी ओर यह राज्य की राजनीति में एक बार फिर 'मराठी बनाम गैर-मराठी' बहस को तीखा कर सकती है। यह मुद्दा खासकर मुंबई, ठाणे और पुणे जैसे शहरी इलाकों में तेज़ी से सियासी रंग पकड़ सकता है। अब सबकी नजरें सरकार की प्रतिक्रिया पर टिकी हैं। क्या CM Devendra Fadnvi, DCM Eknath Shinde इस मांग पर गंभीरता से विचार करेंगे? या फिर यह मुद्दा भी अन्य कई जनभावनाओं की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा?