पाकिस्तान कभी भी आतंकवाद और हिंसा से मुक्त नहीं रहा है। पहले ट्रेन का अपहरण और फिर आत्मघाती बस हमला उसी कड़ी का हिस्सा हैं। राजनेता और सेना एकसुर में आज जिस हिंसा व आतंकवाद का विरोध कर रहे हैं, वह आज अगर इतना ताकतवर है, तो इसमें दोष भी तो उन्हीं का है।
पाकिस्तान चैनल या वेबसाइट पर जाए, ता वहा आपको गाजा में हो रहे संघर्ष या भारत द्वारा शासित कश्मीर में हो रहे कथित अत्याचार की खबरों की भरमार मिलेगी। इन भ्रामक खबरों के बादल अस्थायी तौर पर सही, तब छंटते हैं, जब आतंकवादियों और अलगाववादियों के आतंकी हमले खुद पाकिस्तान में होते हैं। इन्हें बाकायदा रिपोर्ट किया जाता है, राजनेता इनकी कड़ी निंदा करते हैं और जो वर्दीधारी हैं, वे आतंकवाद से लड़ने का दृढ़ संकल्प भी लेते हैं। फिर हिंसा की अगली वारदात होने तक सब भुला दिया जाता है। पाकिस्तान की यही पुरानी कहानी है। लेकिन अब ऐसी वारदात बार-बार हो रही हैं।
बलूचिस्तान में पूरी ट्रेन के अगवा किए जाने के करीब एक हफ्ते बाद अब खैबर पख्तूनख्वा के नोशकी में जिस तरह से आत्मघाती बस हमला हुआ है, उससे पाकिस्तान की चिंताएं बढ़ी ही हैं। 11 मार्च को करीब 400 यात्रियों को ले जा रही जफर एक्सप्रेस के साथ जो हुआ, वह खतरे की पहली घंटी थी, लेकिन इसे पाकिस्तान में जो कुछ चल रहा है, उससे अलग करके नहीं देखा जा सकता। पाकिस्तान में लगातार हमले तो हो रहे हैं, अब ये दुस्साहसिक भी होते जा रहे हैं। 30 घंटे के सघन अभियान के बाद पाकिस्तानी सेना यात्रियों को बचाने के पाकिस्तान के दावे को वारदात की जिम्मेदारी लेने वाले संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) की तरफ से तुरंत ही चुनौती मिली थी। वैश्विक मीडिया खासकर अल जजीरा ने खबर दी कि कई यात्रियों की अब तक कोई खबर नहीं है। वैश्विक आतंकवाद सूचकांक (जीटीआई) को 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, बुर्किना फासी के बाद दुनिया में आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित देश पाकिस्तान ही है। पड़ोसी अफगानिस्तान इस मामले में दसवें पायदान पर है। दोनों देश एक-दूसरे पर आतंकवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगाते रहते हैं। रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तान में 2024 में आतंकवाद से हुई मौतें 45 फीसदी बढ़कर 1,081 हो गई, जबकि आतंकी हमले दोगुने बढ़कर 517 से 1,099 हो गए। पाकिस्तानी थिंक टैंक द सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज (सीआरएसएस) के अनुसार, 2024 में पाकिस्तान में हुई कुल मौतों में से 60 फीसदी आम नागरिक थे। रिपोर्ट ने यह भी बताया कि पाकिस्तानी सेना, खुफिया, पुलिस और दूसरी कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा आतंकी हमले और मौतें झेली हैं। यह कहना दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन अतिशयोक्ति नहीं कि पाकिस्तान कभी भी आतंकवाद और हिंसा से मुक्त नहीं रहा है, जिनमें से कुछ को तो इसने खाद पानी देकर पडोसी देशों में निर्यात भी किया है।
पाकिस्तान के सबसे बड़े, लेकिन सबसे कम आबादी वाले एक गरीब प्रांत में हिंसा को रोकने के लिए सैन्य अभियानों के उपयोग के नतीजों को लेकर सुरक्षा विश्लेषक चेतावनी देते रहे हैं कि यह उस प्रांत के अलगाव का कारण भी बन सकती है, जिसका हाशिए पर रहने का लंबा इतिहास रहा है। अल जजीरा के कंट्री प्रोफाइल सेक्शन में पाकिस्तान के बारे में बताया गया है कि उसने अगस्त, 1947 में भारत से विभाजन के महज छह महीने बाद 1948 में बलूचिस्तान को अपने कब्जे में ले लिया था और तबसे उसने यहां कई अलगाववादी आंदोलन देखे हैं। 2023 की जनगणना के अनुसार, पाकिस्तान की करीब 24 करोड़ की आबादी में से लगभग डेढ़ करोड़ लोगों का घर बलूचिस्तान कोयला, सोना, तांबा और गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध होने के बावजूद देश का सबसे निर्धन क्षेत्र बना हुआ है।
बलूचिस्तान की निर्धनता को रेखांकित करते हुए बीबीसी ने बताया कि नौ कोच वाली जफर एक्सप्रेस का अपहरण मध्य पाकिस्तान के सघन बोलन दरें में हुआ, जो एक ऐसा सुदूर जंगली क्षेत्र है, जहां इंटरनेट या मोबाइल कवरेज तक नहीं है। जाहिर है कि इसने सरकार के काम को और भी मुश्किल बना दिया। बलूचिस्तान में ही पाकिस्तान के लिए सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण ग्वादर बंदरगाह है, जो 62 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का प्रमुख हिस्सा है, जिसका उद्देश्य दक्षिणी-पश्चिमी चीन पाकिस्तान के जरिये अरब सागर से जोड़ना है। उत्तर में खुजराब दरें से लेकर, जहां यह चीन के झिंजियांग प्रांत से पाकिस्तान में प्रवेश करता है, दक्षिण में ग्वादर तक इस पूरे गलियारे पर आतंकवादी समूहों पर लगातार हमले किए गए हैं। चीनी कर्मचारी और प्रतिष्ठान भी इससे बच नहीं सके हैं, लिहाजा चौन भी चिंतित है। पाकिस्तान के सभी सुरक्षा बंदोबस्त अपर्याप्त ही साबित हुए हैं। अपने ही देश की सुरक्षा के लिए चीन की सेना को अनुमति देने के मामले में पाकिस्तान चौकन्ना बना हुआ है। अधिक समृद्ध पंजाब और दूसरे प्रांतों के बीच राजनीतिक विवाद रहते ही हैं, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि बलूचिस्तान पाकिस्तान की समृद्धि की कुंजी है। बलूच राष्ट्रवादियों का आरोप है कि पाकिस्तान ने प्रांत के संसाधनों का दोहन तो किया, लेकिन यहां के लोगों की उपेक्षा की है, जिसका नतीजा अलगाववादी आंदोलन और सशस्त्र विद्रोह के रूप में दिख रहा है।
मरी, बुगती और दूसरी जनजातियों द्वारा विद्रोह के रूप में शुरू हुआ पाकिस्तान राज्य के खिलाफ वर्षों से हो रहा यह संघर्ष अब उन शिक्षित व अत्यधिक प्रेरित युवाओं तक पहुंच गया है। इनमें से बीएलए सर्वाधिक अग्रणी और व्यवस्थित संगठन है, जो इस मायने में अलग है कि इसका समझौते और आत्मसमर्पण जैसा कोई इतिहास नहीं है। उमैर जावेद डॉन में लिखते हैं, खैबर पख्तूनख्वा और सिंध दोनों की राजनीति में जातीय राष्ट्रवाद एक प्रमुख विशेषता रही है। हालांकि इनमें से एक प्रांत में इस्लामी कट्टरपंथ वाला आयाम भी जुड़ा हुआ है। पाकिस्तान की आधिकारिक लाइन हमेशा से विदेशी ताकतों के सिर पर आरोप मढ़ने की रही है, लेकिन जावेद इसके औचित्य की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, पिछले दो दशकों का अनुभव बताता है कि अलगाववाद को रोकने के लिए जो भी रणनीतियां अपनाई गई, वे नाकामयाब ही रही हैं। बलूचिस्तान में उथल-पुथल पाकिस्तान की सबसे बड़ी सुरक्षा चुनौती है। डॉन अखबार अपने संपादकीय में लिखता है, जब तक बलुचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के अलगाव पीड़ित हिस्सों में नागरिक प्रशासन के नेतृत्व में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रयासों को पूरक नहीं बनाया जाएगा, तब तक हिंसा का यह खूनी चक्र जारी रहेगा।