मुंबई। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शहर के एक बिल्डर को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया है। बिल्डर पर वडाला (पश्चिम) में पारसी कॉलोनी में अपने प्रोजेक्ट में फ्लैट का वादा करके एक डॉक्टर को धोखा देने का आरोप है। डेवलपर राजेश जैन ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी। हाईकोर्ट ने 26 अगस्त के अपने आदेश में बिल्डर की अग्रिम जमानत की याचिका खारिज कर दी थी।
मिली जानकारी के मुताबिक, बिल्डर की अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सुधांशु धूलिया और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने शिकायतकर्ता डॉ. भारती पाटिल को नोटिस जारी किया और सुनवाई 25 अक्तूबर के लिए तय की। अदालत ने मामले की चल रही जांच में उनके सहयोग के अधीन याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई भी कठोर कदम नहीं उठाने के निर्देश दिए हैं।
न्यूमैक ग्रुप के जैन जनवरी 2012 में इलाज के लिए चिंचवड में एक अस्पताल गए थे। उन्होंने खुद का परिचय मुंबई के एक प्रतिष्ठित बिल्डर के तौर पर देते हुए डॉ. पाटिल और उनके बेटे डॉ. निर्मल को अपने प्रोजेक्ट न्यूमैक ऑरा में निवेश करने के लिए कहा और कम कीमत में फ्लैट दिलाने का वादा किया। जैन के वादे पर भरोसा करते हुए उन्होंने जैन की फर्म को साल 2019 तक तीन किश्तों में कुल 90 लाख रुपए हस्तांतरित किए। अगस्त 2019 में जैन ने उन्हें 12वीं मंजिल के फ्लैट के लिये आवंटन पत्र जारी किया। लेकिन जब वे साइट पर गए तो वहां कोई विकास कार्य नजर नहीं आया। जैन से उन्होंने जब इस बारे में पूछताछ की और अपने पैसों की मांग की तो जैन ने डॉक्टर को रकम लौटाने से इंकार कर दिया। आरोप है कि जैन ने डॉक्टर को गंभीर रूप से धमकाया। इसी मामले में 26 अगस्त को हाईकोर्ट ने बिल्डर जैन की अग्रिम जमानत की याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में माना कि इस मामले में बिल्डर की बदनीयती साफ नजर आ रही है।
बिल्डर जैन ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई। जैन के वकीलों ने दलील दी कि पहले हाईकोर्ट ने इसे एक सिविल मामला बताते हुए अंतरिम संरक्षण प्रदान किया था, लेकिन बाद में हाईकोर्ट ने अंतिम सुनवाई के समय अपना नजरिया बदल लिया। बिल्डर ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह रकम लौटाने को तैयार था लेकिन डॉ. पाटिल उससे दंडात्मक ब्याज के तौर पर मूल रकम पर 24 फीसदी ब्याज की मांग कर रहे थे। बिल्डर ने महारेरा के समक्ष इस मामले के निपटारे की कोशिश की जानकारी भी दी। बिल्डर के वकीलों की दलील थी कि इस मामले में कोई आपराधिक कृत्य शामिल नहीं है, बल्कि यह एक दीवानी मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 25 अक्तूबर तय की है और डॉ. पाटिल को भी सुनवाई में उपस्थित रहने के लिये नोटीस भेजे गए हैं।