प्रसाद के लड्डू पर सियासी लड़ाई

25 Sep 2024 12:01:54
Tirupati Laddu Controversy
 
Tirupati Laddu Controversy एसः श्रीनिवासन - भारत में खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट और प्रदूषण एक व्यापक समस्या है। फल, सब्जियां, मांस, खाद्य तेल, शीतल पेय, यहां तक कि दवाइयां भी मिलावटी पाई जाती हैं। हवा में जहरीला उत्सर्जन है और पानी अक्सर पौने लायक नहीं रहता है। इसलिए हर कोई प्रदूषित जीवन जीने का आदी है, पर क्या होता है, जब प्रदूषक तत्व किसी मंदिर की येदियों तक पहुंच जाते हैं, खासकर तिरूपति तिरूमाला में? दुनिया भर में तिरूपति बालाजी के भक्तों को तब भयानक झटका लगा, जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने घोषणा की कि भगवान वेंकटेश्वर को प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाने वाले और दुनिया भर में भक्तों की वितरित किए जाने वाले लड्‌डूओं में मछली का तेल, गोमांस की चर्बी और अन्य वसा शामिल हैं। नायडू ने मिलावट के लिए अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री जगन मोहन और उनकी सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।
 
इसके बाद जगन की ओर से तत्काल प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने आरोप को दुर्भावनापूर्ण बताते हुए दावा किया है कि नावडू सियासी फायदे के लिए नीचे गिर गए हैं। राज्य कांग्रेस प्रमुख और जगन की बहन वाईएस शर्मिला ने तत्काल सीबीआई जांच की मांग रख दी है। भाजपा प्रमुख और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे पी नङ्गा ने मुख्यमंत्री चंद्रबाब नायडू को पत्र लिखकर अपनी चिंता व्यक्त की है। फिलहाल, नायडू के डिप्टी और जन सेना के संस्थापक पवन कल्याण इस विवाद को सबसे ज्यादा हवा दे रहे हैं। उन्होंने मंदिर का प्रबंधन करने वाले तिरूमाला तिरूपति देवस्थानम को बंद करने की मांग की है और राष्ट्रीय स्तर पर सनातन धर्म रक्षण बोर्ड की स्थापना कर भारत के सभी हिंदू मंदिरों को अपने कब्जे में लेने की वकालत की है। मिलावट के लिए स्वयं को भी दोषी मानते हुए उन्होंने भगवान को प्रसार करने के लिए 11 दिन की तपस्या की भी घोषणा की है। पवन कल्याण अपने राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाने की अपनी महत्वाकांक्षा की लगातार बढ़ाते दिख रहे हैं। भाजपा और हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार से जुड़े अन्य संगठन भी अपनी अपनी नई तैयारी या नई जमीन तैयार करने में जुट गए हैं।
 
दूसरी ओर, पूर्व मुख्यमंत्री जगन रेड्डी सदमे की स्थिति में हैं और मुसीबत से बाहर निकलने के अपने विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। वास्तव में, लड्डू मिलावट विवाद ने राज्य में श्रद्धालुओं को झकझोर कर रख दिया है। जगन रेडी ईसाई हैं, जो लंबे समय से बहुसंख्यकों की कीमत पर अल्पसंख्यकों की इच्छाओं को बढ़ावा देने के दक्षिणपंथी समुदाय के आरोपों का सामना कर रहे हैं।
 
साल 2021 में जब मुख्यमंत्री के रूप में जगन ने मंदिर का दौरा किया था, तब उन पर परिसर में प्रवेश करने से पहले एक गैर-हिंदू द्वारा मंदिर में अनिवार्य घोषणा देने की प्रथा तोड़ने का आरोप लगाया गया था। आजकल जगन के खिलाफ कुछ फर्जी सूचनाओं को भी फैलाया जा रहा है, जिनका जिक्र भी यहां सही नहीं है।
 
ऐसे में, पवन कल्याण राज्य की राजनीति की पोल खोलते नजर आ रहे हैं। अब तक आंध्र प्रदेश की राजनीति शक्तिशाली कम्मा और रेड्डी द्वारा नियंत्रित की जाती रही है। दोनों ही प्रभावी और भूमि-धारक जातियां हैं। सरकारी मीडिया पर कम्मा जाति का दबदबा है। अपने शुरूआती दिनों में नायडू को प्रसिद्ध मीडिया मुगल रामोजी राव ने सहारा दिया था, जिनका हाल ही में निधन हुआ है। जब जगन सता में थे, तो उन्होंने अपने ही मीडिया हाउस को आगे बढ़ाया था। आंध्र प्रदेश में कापू एक कृषि प्रधान समुदाय है और राज्य की आबादी का 26 प्रतिशत हिस्सा है, इसके पास स्वतंत्र राजनीतिक शक्ति का अभाव है। यह समुदाय लंबे समय से खुद को किसी न किसी प्रभावी राजनीतिक समूह से जोड़ता आया है। अभिनेता से नेता बने पवन कल्याण के उदय के साथ कई लोग अपने लिए एक नया अवसर उभरता देख रहे हैं। इस प्रकरण का तात्कालिक परिणाम यह है कि जगन खेमे के कुछ कापू नेता पवन की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
 
पवन कल्याणा कई उतार-चढ़ाव के बाद आंध्र प्रदेश की राजनीति में उभरे हैं। वह क्यूबा के क्रांतिकारी चे ग्वेरा के प्रशंसक हैं और उन्होंने 2007 में कॉमन मैन प्रोटेक्शन फोर्स का गठन किया था। जब यह फोर्स आगे बढ़ने में नाकाम रही, तो अगले साल वह अपने अभिनेता भई चिरंजीवी की पार्टी प्रजा राज्यम में शामिल हो गए और इसकी युवा शाखा का नेतृत्व किया। साल 2009 के विधानसभा चुनाव में प्रजा राज्यम ने 18 सीटें जोतीं, लेकिन अगले साल उसने खुद का कांग्रेस में विलय करा लिया। पवन कल्याण ने कुछ समय तक खुद को राजनीति से दूर रखा और उसके बाद एंग्री यंग मैन की छवि के साथ अपने संगठन जन सेना की खड़ा किया। उन्होंने दक्षिणी कार्ड भी खेला। नरेंद मोदी की राजनीति की कड़ी आलोचना भी की। साल 2019 में उन्होंने अपने दम पर किस्मत आजमाई, लेकिन बुरी तरह नाकाम रहे। उनके लिए निर्णायक मोड़ साल 2024 में आया, जब उन्होंने खुद को भाजपा और तेदेपा, दोनों के साथ जोड़ लिया। उनकी पार्टी ने 21 सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी पर जीत हासिल की और उन्हें राज्य के उप- मुख्यमंत्री के रूप में बेशकीमती पद मिला।
 
आंध्र प्रदेश की राजनीति में पवन कल्याण की यात्रा अभी और दिलचस्प हो सकती है। खास यह भी है कि उनके समर्थकों को भाजपा के साथ जुड़ने या हिंदुत्व विचारधारा को अपनाने में कोई परेशानी नहीं हो सकती है। चुनाव लड़ने से लेकर प्रसादम विवाद तक पवन कल्याण ने अब तक अपने पते बड़ी चतुराई से खखेले हैं। वह अब दक्षिणपंथी नेताओं से भी ज्यादा दक्षिणपंथी लग रहे हैं। इसे भाजपा के लिए भी अच्छी खबर माना जा सकता है। पवन भगवा पार्टी के लिए दो तरह से उपयोगी हैं। अव्वल तो उनके जरिये हिंदुत्व विचारधारा को राज्य की राजनीति में प्रवेश मिल सकता है। दूसरा, जब भी नायडू अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करेंगे, तो पवन कल्याण केंद्र और राज्य के बीच संतुलन बनाने वाले कारक बन सकते हैं।
 
आंध्र प्रदेश की राजनीति बदल रही है। कांग्रेस के पत्तन के साथ, आंध्र प्रदेश पिछले कुछ दशकों से दो क्षेत्रीय दलों वाला सूबा बन गया है। ऐसे में, वाईएसआर कांग्रेस की गिरावट का मतलब है भाजपा के लिए जगह बड़ना। शायद यह लंबे समय में नायडू के लिए भी अच्छी खबर नहीं है, पर फिलहाल, उन्हें प्रसादम विवाद से सफलतापूर्वक निकलना होगा।
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