खेल और सियासत का मेल पुराना

11 Sep 2024 11:29:19
Sports and politics
 
Sports and politics राजकुमार सिंह - खेल संघों पर काबिज राजनेताओं और उनके परिजनों के चलते खेलों में राजनीति की चर्चा अक्सर होती रहती है, मगर विनेश फोगाट (Vinesh Phogat) व बजरंग पूनिया (Bajrang Punia) के कांग्रेस (Congress) में शामिल होने के बाद खिलाड़ियों की राजनीति पर चर्चा गर्म है। ये दोनों पिछले साल भारतीय कुश्ती संघ के तत्कालीन अध्यक्ष व भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह के विरूद्ध दिल्ली में जंतर-मंतर पर हुए धरना-प्रदर्शन में अगुवा थे। ब्रजभूषण पर महिला पहलवानों के शोषण के आरोपों के बीच हुए धरना-प्रदर्शन में तीसरा बड़ा चेहरा ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक थीं। तब भाजपा से जुड़े लोगों ने आरोप लगाया था कि भारतीय कुश्ती संघ पर वर्चस्व के लिए हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सांसद बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा इन पहलवानों को मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। खैर, उम्मीद के मुताबिक, कांग्रेस में शामिल होते ही विनेश को जुलाना विधानसभा सीट से टिकट मिल गया, जबकि बजरंग ऑल इंडिया किसान कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बना दिए गए, तो भाजपा को जवाबी हमले का मौका मिल गया है।
 
विनेश और बजरंग हरियाणा से हैं, इसलिए इस विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा और गरमाएगा, पर खिलाड़ियों के राजनीति में आने का यह पहला मामला नहीं है। हरियाणा में ही पिछली बार भाजपा ने तीन अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को चुनाव लड़‌वाया था। पहलवान बबीता फोगाट और योगेश्वर दत्त हार गए। तीसरे खिलाड़ी संदीप सिंह, जी भारतीय हॉकी टीम के कसान भी रहे थे, पेहोवा से जीतकर हरियाणा सरकार में मंत्री बने। महिला कोच द्वारा उन पर शोषण के आरोप पर बड़ा हंगामा मचा। तब तो संदीप अपना मंत्री पद बचा ले गए, लेकिन इसी साल मार्च में राज्य में नेतृत्व परिवर्तन हुआ, तो उनकी कुर्सी चली गई। अब भाजपा ने उन्हें विधानसभा टिकट भी नहीं दिया।
 
वैसे अपने देश में और भी कई बड़े खिलाडी राजनीति में किस्मत आजमा चुके हैं। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कतान मोहम्मद अजहरूद्दीन 2009 में मुरादाबाद से कांग्रेस सांसद बने। ओलंपिक पदक विजेता निशानेबाज राज्यवर्धन सिंह राठौड़ राजस्थान से भाजपा सांसद ही नहीं, केंद्र सरकार में मंत्री भी बने। गौतम गंभीर दिल्ली से भाजपा सांसद रहने के बाद अब भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच हैं, तो एक और शानदार सलामी बल्लेबाज चेतन चौहान भी अमरोहा से भाजपा सांसद रहे थे। अपने 'बोल-बचन' के लिए चर्चित पूर्व सलामी बल्लेबाज नवजोत सिंह सिद्धू सांसद और विधायक ही नहीं, पंजाब में मंत्री भी रहे। पूर्व भारतीय हॉकी कशान परगट सिंह पंजाब में कांग्रेस के विधायक रहे, तो पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता देवेंद्र झांझरिया राजस्थान से भाजपा सांसद बने। पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर दिल्ली से लोकसभा चुनाव हारे ओलंपिक पदक विजेता मुक्केबाज विजेंद्र सिंह अब भाजपा में हैं। असलम शेर खान और दिलीप तिर्की जैसे अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी भी अतीत में सांसद रह चुके हैं। दो पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद और यूसुफ पठान इस बार तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर पश्चिम बंगाल से लोकसभा सांसद चुने गए हैं। पंजाब की सत्ता में आने पर आप ने क्रिकेटर हरभजन सिंह को राज्यसभा सदस्य बनाया है, पर पार्टी के संकट काल में सक्रियता तो दूर, वह मौन बने रहे हैं। मतलब, जैसे राज्यसभा में सचिन तेंदुलकर ने अपना कार्यकाल शांति से बिता दिया, ठीक वैसे ही हरभजन करते दिख रहे हैं।
 
उधर, क्रिकेटर रवींद्र जडेजा (Ravindra Jadeja) ने वन डे और टेस्ट क्रिकेट से संन्यास नहीं लिया, पर भाजपा (BJP) की सदस्यता ले ली। उनकी पत्नी रिवाबा गुजरात में भाजपा विधायक हैं। ऐसा पहली बार नहीं कि खेल से संन्यास लिए बिना खिलाड़ी राजनीति में आ गया। ओलंपिक पदक जीतने वाली भारत की पहली बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल भी 2020 में भाजपाई बन चुकी हैं। एथलीट पीटी ऊषा और मुक्केबाज मैरी कॉम भाजपा के पाले में हैं। क्रिकेटर मनोज तिवारी ने 2021 में पश्चिम बंगाल में विधायक और मंत्री बनने के बाद 2023 में क्रिकेट को अलविदा कहा। मोहम्मद कैफ जब 2014 में कांग्रेस के टिकट पर फूलपुर से लोकसभा चुनाव हारे, तब वह घरेलू क्रिकेट खेल रहे थे।
 
शानदार क्रिकेट कप्तान रहे टाइगर पटौदी 1971 में गुड़‌गांव से लोकसभा चुनाव हारे, जबकि भारत के लिए अपना अंतिम अंतरराष्ट्रीय मैच उन्होंने 1975 में खेला। दिलचस्प यह भी है कि इंदिरा गांधी द्वारा पूर्व रियासतों के प्रिवीपर्स समाप्त करने के विरोध में विशाल हरियाणा पार्टी के टिकट पर गुड़गांव से लोकसभा चुनाव लड़ने वाले नवाब पटौदी 1991 में कांग्रेस के टिकट पर भी भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़े, पर हार गए।
 
पटौदी, कीर्ति, हरभजन और सिद्ध की राजनीति सेवा भावना या विचारधारा के बजाय खेल जीवन के ढलान पर लोकप्रियता भुनाने का खेल ज्यादा लगती है, क्योंकि इसमें प्रतिबद्धता और निरंतरता नहीं है। यही खेल खिलाड़ियों के जरिये राजनीतिक दल भी खेलते आए हैं, पर इसके अपवाद भी हैं। सबसे प्रेरक उदाहरण, भारत के पूर्व हॉकी कप्तान जयपाल सिंह मुंडा हैं। 3 जनवरी, 1903 को खूंटी (झारखंड) में जन्मे मुंडा असाधारण प्रतिभा के धनी थे। आईसीएस बनने वाले वह पहले आदिवासी थे, पर 1934 में इस्तीफा देकर पाना के प्रिंस ऑफ वेल्स कॉलेज में शिक्षक बन गए। आदिवासियों की दशा देखकर 1939 में आदिवासी महासभा बनाई, जो आजादी के बाद 1950 में झारखंड पार्टी बन गई। जयपाल सिंह संविधान सभा में भी शामिल थे और आदिवासियों को अधिकार दिलाने के मामले में उनका बहुत योगदान था। वह तीन बार सांसद भी रहे। वह 1928 में एम्सटर्डम ओलंपिक में स्वर्ण विजेता भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे। भारतीय टीम उनकी कप्तानी में 17 मैच खेली, जिनमें से 16 जीती, जबकि एक ड्रॉ रहा। बीकानेर राज परिवार में जन्मे अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज कर्णी सिंह तो 1952 में निर्दलीय सांसद चुने गए और पांच बार बीकानेर से सांसद रहे।
 
ये चंद समर्पित खिलाड़ी राजनेता ऐसे हैं, जिनके राजनीतिक प्रभाव को स्वीकार किया जाता है। वास्तव में, आज खिलाडियों और राजनेताओं, दोनों ओर ज्यादा गंभीरता की जरूरत है। यह नया दौर है, जरूरत ईमानदार प्रदर्शन की है। खिलाड़ियों को जहां अपने व्यक्तिगत एजेंडे के साथ राजनीति में नहीं आना चाहिए, तो वहीं राजनेताओं की भी खेल की दुनिया में अनावश्यक हस्तक्षेप से बचना चाहिए। अगर कोई खिलाड़ी राजनीति में आए, तो सेवा से आदर्श खड़ा करें और अगर कोई राजनेता खेलों की ओर जाए, तो पदक और ट्रॉफी दिलाए, तभी सार्थकता है।
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