सवालों के घेरे में रचनात्मक स्वतंत्रता

वर्ष 1999 के अंतिम सप्ताह में काठमांडू से दिल्ली आ रहे इंडियन एयरलाइंस के विमान आइसी814 को आतंकवादियों ने हाईजैक कर लिया और उसे अफगानिस्तान के कंधार ले गए। आतंकियों ने भारत की जेलों में बंद कई दुर्दात आतंकियों को रिहा करने की शर्त रखी, जिसे विमान यात्रियों की सुरक्षित रिहाई के लिए भारत सरकार को मानना पड़ा था। अब इस पर एक वेब सीरीज बनाई गई है जिसमें अनेक तथ्यों से छेड़छाड़ की गई है। इसे इतिहास को बिगाड़ना ही कहा जाएगा...

Pratahkal    10-Sep-2024
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IC814 controversy
 
IC814 controversy अनंत विजय - हिंदी में एक कहावत बेहद लोकप्रिय है कि पूत के पांच पालने में ही दिख जाते हैं। मतलब कि आरंभ से ही भविष्य का अनुमान हो जाता है। नेटफ्लिक्स पर हाल ही में अनुभव सिन्हा निर्देशित एक वेव सीरीज आई है आइसी 814, कंधार हाईजैक। यह वेब सीरीज शुरू होती है तो नेपथ्य से आवाज आती है कि काठमांडू से विमान हाईजैक हो गया। आगे यह सवाल पूछा जाता है कि किसने किया यह हाईजैक क्यों किया, यह सब भी पता करना था। नेपथ्य को यह आवाज चलती रहती है, इतना पेचीदा था यह सब कि सात दिन लग गए, क्यों लग गए सात दिन और क्या क्या हुआ उन सात्त दिनों में। इसके बाद कहानी आरंभ होती है उन सात दिनों की। हाईजैक से लेकर विमान में सवार लोगों के हिंदुस्तान पहुंचने तक। अंत में फिर वही आवाज पर्दे पर गूंजती है, कांधार में केवल एक अधूरी कड़ी छूट गई थी, वह 17 किलो आरडीएक्स। तालिबान के कहने पर हाईजैकर्स ने वह बैग हमारे प्लेन से निकलवाया। आगे बताया जाता है कि उस रात ओसामा बिन लादेन के घर तरनक किला में पांचों हाइजैकर्स और तीनों आतंकवादियों के वापस आने पर जश्न का इंतजाम था। इस हाईजैक का आईएसआई से इतना कम संबंध था कि उन्हें इस जश्न में शामिल होने से रोक दिया गया। हाईजैक खत्म हुआ पर ये तीनों (छोड़ दिए गए आतंकवादी) न जाने आज तक कितने मासूम माँतों और हादसों के जिम्मेदार हैं। इसके बाद संसद पर हमला, डैनियल पलं की गला रेतकर हत्या, मुंबई पर आतंकवादी हमला और पुलवामा की घटना का उल्लेख किया गया। परोक्ष रूप से यह संकेत किया जाता है कि अगर ये तीन मिलती है। आतंकवादी नहीं छोड़े गए होते तो आतंकवादी घटनाएं न होतीं।
 
वेब सीरीज के आरंभ में पूछे गए प्रश्न कि हाईजैक किसने किया और अंत में दिए उत्तर को मिलाकर देखें तो सीरोज निर्माण की मंशा साफ हो जाती है। उत्तर है कि इस हाईजैक में पाकिस्तान की बदनाम खुफिया एजेंसी का हाथ नहीं था या बहुत कम था। हाईजैक के बाद उस समय के गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने संसद में छह जनवरी 2000 को एक बयान दिया था। उस बचान में यह कहा गया था कि हाईजैक की जांच करने में जुटी एजेंसी और मुंबई पुलिस ने चार आईएसआई के आपरेटिव को पकड़ा था। ये चारों इंडियन एयरलाइंस के हाईजैकर्स के लिए सपोर्ट सेल की तरह काम कर रहे थे। इन चारों आतंकवादियों ने पूछताछ में यह बात स्वीकार की थी कि आइसी 814 के हाईजैक की योजना आईएसलाई ने बनाई थी और उसने आतंकवादी संगठन हरकत-उल-अंसार के माध्यम से इसकी अंजाम दिया था। पांचों हाईजैकर्स पाकिस्तानी थे। हरकत तल अंसार पाकिस्तान के रावलपिंडी का एक कट्टरपंथी संगठन था जिसे 1997 में अमेरिका ने आतंकी संगठन घोषित किया था। उसके बाद इस संगठन ने अपना नाम बदलकर हरकत-उल-मुजाहिदीन कर लिया था। संसद में दिए इस बयान के अगले दिन पाकिस्तान के अखबारों में यह समाचार भी प्रकाशित हुआ था कि भारत ने जिन तीन आतंकवादियों को छोड़ा था वे कराची में देखे गए थे। इसके अलावा भी कई घटनाएं उस समय घटी थीं जिससे यह स्पष्ट होता है कि आइसी 814 के हाईजैक को पाकिस्तान की सरपरत्ती में अंजाम दिया गया था। पाकिस्तान में मसूद अजहर ने भाषण में कहा था, मैं यहां आपको यह बताने के लिए आया हूं कि मुसलमान तब तक चैन से नहीं बैठेंगे, जब तक अमेरिका और भारत को बर्बाद न कर दें। इतने साक्ष्यों के बावजूद इस वेब सीरीज की कहानी में आईएसआई की भूमिका के नकारने का क्या कारण हो सकता है। इसके बारे में निर्देशक की बताना चाहिए। यह सिनेमैटिक क्रिएटिव फ्रीडम नहीं, बल्कि कुछ और प्रतीत होता है।
 
जिस तरह पूरे सीरीज में घटनाक्रम को दिखाया गया है, यह भी स्थितियों के बारे में अल्पज्ञान पर आधारित प्रतीत होता है। ऐसा लगता है कि निर्देशक को इस बात का भान ही नहीं है कि समाचारपत्रों में किस तरह काम होता है या मंत्रालयों में संकट के समय किस प्रकार से योजनाएं बनाई जाती हैं। कंधार एयरपोर्ट पर हाईजैकर्स से बातचीत के प्रसंग को जिस तरह से दिखाया गया है, यह फूहड़ता की श्रेणी में आता है। आतंकवादियों और अधिकारी के संवाद से ऐसा लगता ही नहीं है कि कोई देश इतने बड़े संकट से गुजर रहा है। कुछ घटनाओं को तो बेहद मामूली दशांया गया। जैसे विमान में मौजूद एक लाल बैग के चारे में। फिल्म निर्देशक ने थोड़ी मेहनत की होती और इस्लामाबाद से कांधार भेजे गए भारतीय राजनयिक ए. आर. घनश्याम की डिस्पैच को पढ़ लिया होता, तो संभवतः लाल बैग से जुड़ी जानकारी उनको मिलती और वह आईएसआई को क्लीन चिट देने की 'रचनात्मक स्वतंत्रता' लेने का दुस्साहस नहीं कर पाते। 31 दिसंबर की रात की घटना का बयान करते हुए घनश्याम लिखते हैं कि रात नौ बजे के करीब कैप्टन सूरी लाउंज में आए और बताया कि तालिबान आइसी 814 में इंधन भरने में जानबूझकर देरी कर रहा है। वह हाईजैकर्स का लाल बैग ढूंढ रहे हैं। घनश्याम तुरंत तालिबान सरकार के मंत्री मुतवक्किल, जो उस समय तक एयरपोर्ट पर ही थे, उन्हें सारी बात बताते हैं। थोड़ी देर बाद जब घनश्याम विमान के पास पहुंचते हैं तो देखते है कि मुतवक्किल की लाल रंग की पीरो कार विमान के पास खड़ी थी। गाड़ी की हेडलाइट आन करके विमान से कुछ खोजा जा रहा था। कुछ लोग हर लाल रंग के बैग को गाड़ी के पास ले जा रहे थे और फिर थोड़ी देर में उसे वापस लाकर विमान में रख रहे थे। वहां काम कर रहे एक वर्कर ने बताया कि असली लाल बैग मिल गया। उसमें पांच हैंड ग्रेनेड रखे थे। लेकिन कहानी इससे गहरी थी। उस लाल बैग में हाइजैकर्स के पाकिस्तानी पासपोर्ट भी थे जिसमें उनका नाम पता दर्ज था। आईएसआई के हुक्म पर मुक्तत्रक्किल ने अपनी निगरानी में उस बैग को न केवल खोजा, बल्कि उसे अपने साथ लेकर गए। इसके बाद ही विमान के कैप्टन की विमान उड़ाने की अनुमति मिल सकी। विमान अगले दिन सुबह कंधार एयरपोर्ट से उड़ सका।
 
यहां भी स्पष्ट होता है कि आईएसआई का इस हाईजैकिंग से कितना गहरा संबंध था। दरअसल वह गुनाह का कोई निशान नहीं छोड़ना चाहता था। कंधार एयरपोर्ट की गतिविधियों पर पूरी तरह से आईएसआई का नियंत्रण था। भारत सरकार के उस समय के विदेश मंत्री जसवंत सिंह जब अफगानिस्तान जा रहे थे तो उन्होंने मुतवक्किल से फोन पर कहा था कि वह मुल्ला उमर से मिलना चाहते हैं। पहले तो उसने हां कर दी। थोड़ी देर में आईएसआई के अपने आकाओं से बात करने के बाद जसवंत सिंह को मना कर दिया।
 
इस वेबसीरीज पर विवाद हुआ। नेटफ्लिक्स की प्रतिनिधि मंत्रालय में तलब हुई। मंत्रालय ने डिसक्लेमर लगाने को कहा। वह लगा दिया गया। न ती कमेंट्री बदली गई, और न ही वे दृश्य सुधारे गए जिससे आईएसआई को क्लीन बिट दी गई। इतिहास ऐसे ही बिगाड़ा जाता है। यह मामला आतंकियों के नाम का नहीं, बल्कि उनके आकाओं को बचाने का लगता है।