क्या पाया, क्या खोया

बजट के बाद बहस के केंद्र में आए कैपिटल गेन टैक्स बदलावों का असर अगले साल राजस्व संग्रह के आंकड़े आने के बाद ही स्पष्ट होगा। तब तक इस पर ही संतोष करना होगा कि ये बदलाव कर ढांचे के सरलीकरण की दिशा में हैं।

Pratahkal    31-Jul-2024
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Budget 2024
 
डा. एके वर्मा - आम बजट (Budget 2024) के जिस प्रस्ताव से सबसे ज्यादा बहस उपजी, वह है लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स की दर में बदलाव और उससे जुड़े महंगाई सूबकांक समायोजन की विदाई। आम चर्चा में इसे इंडेक्सेशन बेनिफिट की समाप्ति बताया जा रहा है। बजट प्रस्तुति के हफ्ते भर बाद, अब जब यह तय है कि इस प्रस्ताव की वापसी की कोई संभावना नहीं, तो बेहतर होगा कि हम इसे स्वीकारें और समझने की कोशिश करें कि आम आदमी के लिए इसके क्या मायने हैं।
 
सबसे पहले आसान शब्दों में समझिए कि हुआ क्या है। मुख्यतः चार बदलाव हुए हैं। एक तो वित्त मंत्री ने पूंजीगत लाभ गणना की अवधि की परिभाषा बदल दी। शेयर बाजार में सूचीबद्ध प्रतिभूतियों के लिए एक साल से अधिक की होल्डिंग अवधि के लाभ को दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कहा जाएगा, तो दूसरी ओर, रियल एस्टेट, सोना, गैर सूचीबद्ध प्रतिभूतियों, बॉन्ड, डिबेंचर जैसे अन्य सभी वर्गों में लगी पूंजी के लिए यह कट ऑफ अवधि दो साल हो गई। पहले इन वर्गों में अलग- अलग अवधियों से लॉन्ग टर्म लाभ तय होता था। दूसरा बदलाव यह कि टैक्स दरों में एकरूपता लाई गई। अब सभी निवेश वर्गों में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स की एक ही दर (12.5 प्रतिशत) तय हो गई है। पहले यह प्रतिभूति बाजार के लिए 10 प्रतिशत और अन्य वर्गों के लिए 20 प्रतिशत होती थी। इक्विटी निवेश और इक्विटी म्यूचुअल फंडों के 12 माह से कम अवधि वाले अर्थात शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स की दर 15 से बढ़कर 20 फीसदी हुई है, जबकि गैर- इक्विटी निवेश वाले अन्य सभी वर्गों पर यह दर इनकम टैक्स के स्लैब ढांचे के तहत सामान्य आय मानकर तय होगी।
 
तीसरा परिवर्तन यह कि टैक्स गणना में महंगाई के असर को शून्य करने के लिए जिन लागत सूचकांकों के आधार पर वास्तविक कीमत का हिसाब लगाया जाता था, वे विदा हुए। लंबी निवेश होल्डिंग अवधि वाले रियल एस्टेट जैसे सेक्टर के लिए तय किया गया है कि 2001 से पहले खरीदी गई सभी संपत्तियों के लिए ही इंडेक्सेशन बेनिफिट कायम रहेगा। मतलब स्वर्ण या अचल संपत्तियों के लिए सरकारी मान्यता प्राप्त वेल्यूअर के उचित मूल्य प्रमाणपत्रों की आवश्यकता पड़ेगी, जो वे पुराने दौर से जुड़े सूचकांकों के आधार पर तैयार करेंगे। चौथा अहम बदलाव यह हुआ है कि म्यूचुअल फंडों में भी उनके निवेश पोर्टफोलियो की प्रकृति के हिसाब से दीर्घकालिक लाभ कर गणना होगी।
 
ये चारों बदलाव अच्छे हैं या बुरे? आर्थिक विवेक के तराजू पर तौलें, तो तीन बदलाव ऐसे हैं, जिनकी अच्छाई पर कोई विवाद ही नहीं। चूंकि अल्पकालिक लाभ पर टैक्स की दरें ज्यादा होती हैं, तो अच्छा ही है कि एक आम विक्रेता को अब रियायती दर के लिए तीन के बजाय केवल दो साल प्रतीक्षा करनी होगी। लिहाजा लॉन्ग टर्म की पात्रता का केवल 24 माह रह जाना स्वागतयोग्य है। इसी तरह सभी वर्गों में लॉन्ग टर्म टैक्स की एक ही (12.5 प्रतिशत) दर तय होना टैक्स ढांचा सरलीकरण का बड़ा कदम है। दस फीसदी से 20 फीसदी या दरम्यानी दरों का मकड़जाल विदा होने से सबको फायदा होगा टैक्स अफसरों को, चार्टर्ड अकाउंटेंटों को और उन सभी करदाताओं को भी, जो अपनी टैक्स रिटर्न खुद भरना चाहते हैं। इसी तरह सोने या बॉन्ड में निवेश करने वाले अधिक सुरक्षित फंडों के ट्रीटमेंट को, शेयर बाजार में निवेश करने वाले अधिक जोखिम, अधिक रिटर्न मार्का फंडों से अलग करने की पहल भी उचित ही है, क्योंकि सबको एक ही लाठी से हांकने की जिद क्यों कायम रहे?
 
केवल एक बदलाव पर विवाद है। मकान दुकान की खरीद कीमत और बिक्री कीमत के अंतर में से महंगाई के असर को निकाल बाहर करने की प्रैक्टिस समाप्त हो गई। दस साल पहले 40 लाख में खरीदा मकान आज अगर 90 लाख का बिका है, तो क्या समूचे 50 लाख के अंतर पर टैक्स की गणना हो? नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इन वर्षों में रूपये की कीमत भी तो गिरी। इसीलिए लागत सूचकांक के आधार पर खरीद और बिक्री के अंतर को कम करके वास्तविक मुनाफे का हिसाब लगाया जाता रहा है। यही इंडेक्सेशन या महंगाई सूचकांक समायोजन विदा हुआ है। आलोचक कह रहे हैं कि यह देखो, इंडेक्सेशन विदा हो गया। प्रशंसक कहते हैं कि यह देखो, टैक्स 20 से घटाकर साढ़े 12 प्रतिशत कर दिया। विरोधियों को अंदेशा है कि मकान दुकान बेचने वाले ज्यादातर लोगों की टैक्स अदायगी बढ़ेगी। समर्थक कहते हैं कि ज्यादातर की टैक्स देनदारी कम होगी। वस्तुस्थिति यह है कि दोनों के दावे फिलहाल भरोसेमंद नहीं। वित्त वर्ष के अंत में टैक्स कलेक्शन आंकड़े आने तक कुछ नहीं कहा जा सकता। आमतौर पर टैक्स की दर कम होने से कुल कर राजस्व संग्रह बढ़ता है। लेकिन वित्त मंत्री ने लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन की मद में अनुमानित राजस्व वृद्धि या कमी का आंकड़ा ही नहीं दिया है। मतलब स्वयं मंत्रालय को भरोसा नहीं कि खजाने को फायदा होगा या नहीं। चूंकि इक्विटी निवेशकों के आंसू पोंछने के लिए लॉन्ग टर्म टैक्स की छूट सीमा एक लाख से बढ़ाकर सवा लाख कर दी गई है, अंततः कुल राजस्व में नुकसान भी संभव है।
 
दूसरी आपत्तियां ज्यादा काबिलेगौर हैं। आरोप है कि 2001 के बाद खरीदी गई संपत्ति के लिए इंडेक्सेशन बेनिफिट खत्म करके, सरकार पिछले दरवाजे से वेल्थ टैक्स या विरासत कर थोपना चाहती है, हालांकि इस बात में ज्यादा दम नहीं, क्योंकि लाभ को नई प्रॉपर्टी या विशेष बॉन्ड में पुनर्निवेश करके अपने लाभ को यथावत रखने के पुराने प्रावधान यथावत हैं। दूसरा तर्क है कि वर्ष 2001 को कट आफ ईयर मानने के बजाय 2007 को कट ऑफ ईयर मानना चाहिए था, क्योंकि उससे पहले दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में सर्कल रेट ही लागू नहीं हुआ था। तीसरी शंका है कि प्रस्तावित कैपिटल गेन टैक्स ढांचा प्रॉपर्टी बाजार को काले धन का पार्किंग अड्डा बनाने की बड़ी बीमारी का सीधा इलाज नहीं करता। प्रॉपर्टी सौदों में टैक्स या स्टांप शुल्क बचाने के लिए वास्तविक भुगतान से कम कीमत की रजिस्ट्री कराने के राष्ट्रव्यापी विचलन पर कैसे नियंत्रण होगा यह स्पष्ट नहीं। कीमतें फुलाकर रिहायशी प्रॉपर्टी को आम नागरिक से लगातार दूर ले जाने के गुनहगार फाइनेंसरों सट्टेबाजों पर लगाम कसने की कोई उम्मीद भी इन प्रावधानों से नहीं बंधी 7 भविष्य में शायद दशा सुधरे, फिलहाल इसी पर संतोष कीजिए कि दिशा सही
है।