लोकसेवा आयोग पर बना रहे विश्वास

संघ लोक सेवा आयोग व प्रदेश आयोगों के सदस्यों ने दशकों तक बेहतरीन काम किया, पर बीते कुछ वर्षों में उनके विरुद्ध जो आरोप लगे हैं, उनसे आम जन का विश्वास डगमगा गया है।

Pratahkal    24-Jul-2024
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विभुति नारायण राय - आजादी के फौरन बाद जब बहुत सारे औपनिवेशिक अवशेषों को नष्ट करने की मांग उठ रही थी, एक ब्रिटिश निर्मिति को समाप्त करने से तत्कालीन गृह मंत्री और लौहपुरूष के नाम से विख्यात सरदार पटेल ने यह कहकर इनकार कर दिया था कि देश की एकता के लिए इस स्टील फ्रेम की जरूरत है। यह स्टील फ्रेम आईसीएस (इंडियन सिविल सर्विस) और आईपी (इम्पीरियल पुलिस) नामक दो अखिल भारतीय सेवाओं के रूप में मौजूद था। आजाद भारत में उन्हें नए अवतारों आईएएस (इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस) और आईपीएस (इंडियन पुलिस सर्विस) के रूप में सुरक्षित रखा गया। नई बोतल में पुरानी शराब की तरह इन सेवाओं का अर्हता, परीक्षा, सेवा शर्तों से संबंधित ढांचा कमोवेश बरकरार रहा।
 
संविधान लागू होने के बाद एक बड़ा फर्क यह जरूर आया कि संघ और प्रांतीय लोक सेवा आयोगों के रूप में ऐसी स्वतंत्र संस्थाएं बन गई, जो अभ्यर्थियों का एक निश्चित पद्धति से आकलन करती हैं और फिर वांछित संख्या में उपयुक्त अभ्यर्थियों की सिफारिश सरकार को भेजती हैं। यह व्यवस्था बहुत प्रभावशाली तरीके से वर्षों तक काम करती रही, पर किसी भी अन्य संस्था की तरह लोक सेवा आयोगों में भी गिरावट आई और इन दिनों कुख्यात पूजा खेड़कर ने बेदर्दी से इस सड़ांध को इस कदर उजागर कर दिया है कि बदबू के मारे हमारी नाक फटी जा रही है।
 
प्रादेशिक और संघ लोक सेवा आयोगों के सदस्यों को सांविधानिक हैसियत हासिल होने के कारण इन्होंने दशकों तक बेहतरीन काम किया, पर बीते कुछ वर्षों में उनके विरूद्ध जो आरोप लगे हैं, उनसे आम जन का विश्वास डगमगा गया है। पिछले दिनों कई प्रदेश लोकसेवा आयोगों के अध्यक्ष और सदस्य भ्रष्टाचार के आरोपों में हटाए गए, यहां तक गिरफ्तार भी किए गए हैं। कुछ वर्ष पूर्व पंजाब लोकसेवा आयोग के सदस्यों के पास से करोड़ों रूपये बरामद किए गए थे। इसी तरह इलाहाबाद लोक सेवा आयोग के एक अध्यक्ष के विरूद्ध इतने गंभीर आरोप लगे कि उसी शहर में स्थित उच्च न्यायालय को संज्ञान लेना पड़ा। ये तो सिर्फ चंद नमूने हैं।
 
गिरावट की सबसे बड़ी वजह शायद यह है कि इन संस्थाओं के सदस्यों के रूप में हाड़-मांस के पुतलों की नियुक्ति होती है और उनका चयन करने वाले भी उन्हीं की तरह के मनुष्य ही होते हैं। समस्या की शुरुआत होती है, जब सरकारें सदस्यों या अध्यक्ष के पद पर जाति, क्षेत्र या सिफारिश के आधार पर नियुक्तियां करने लगती हैं। इन अयोग्य सदस्यों से योग्य अभ्यर्थियों के चयन की अपेक्षा करना उनके साथ ज्यादती ही होगी। संविधान द्वारा स्वतंत्र इस संस्था की राजनीतिक नियुक्तियां खुद ही अपनी स्वायत्तता समर्पित करने को कितना उत्सुक रहती हैं, इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। मुझे एक लोक सेवा आयोग के परीक्षा नियंत्रक रह चुके मित्र अधिकारी ने एक बार बातचीत के दौरान बताया कि उनके अध्यक्ष परीक्षा फल घोषित करने के पहले मुख्यमंत्री कार्यालय से हरी झंडी मांगते थे। वे मुख्यमंत्री से बात कर यह भी बताना नहीं भूलते थे कि उनकी जाति के कितने उम्मीदवार सफल हुए हैं। ये अध्यक्ष महोदय बड़ी लंबी कानूनी जद्दोजहद के बाद ही हटाए जा सके और उनके कार्यकाल की सीबीआई जांच वर्षों से लंबित है।
 
पूजा खेड़कर के प्रकरण ने तो पूरे तंत्र की विफलता के नए कीर्तिमान कायम कर दिए हैं। पूरी तरह कम्प्यूटरीकृत संघ लोक सेवा आयोग यह नहीं पकड़ पाया कि पूजा अपने निर्धारित अवसरों से काफी अधिक बारह बार लिखित परीक्षा में बैठी थी। इसके लिए उसे सिर्फ अपने या माता-पिता के नामों की वर्तनी में छोटे-मोटे हेर-फेर करने पड़े, अपने निवास का पता बदलना पड़ा या अलग अलग कोणों से खींची गई तस्वीरें फॉर्म पर चिपकानी पड़ीं। यह विश्वास करना मुश्किल होगा कि बिना किसी अंदरूनी मानवीय मदद के संस्था के कंप्यूटरों को धोखा देना इतना आसान रहा होगा। वह एक ऐसी सीट पर चुनी गई थी, जो अन्य पिछड़ा वर्ग के गैर मलाईदार और शारीरिक अक्षमताओं वाले अभ्यर्थियों के लिए सुरक्षित थी। पूजा का पिता राज्य सरकार का एक रिटायर अधिकारी है। अपनी सेवा के दौरान वह अपनी संपत्ति का वार्षिक ब्योरा जमा करता होगा और निश्चित रूप से यह फर्जी रहा होगा, क्योंकि अवकाश प्राप्ति के बाद जब वह चुनाव लड़ा, तो चुनाव आयोग को दिए विवरणों के अनुसार उसके, उसकी पत्नी और खुद उसकी बेटी पूजा के नाम से करोड़ों रूपयों के मूल्य की चल-अचल संपत्तियां थीं। स्पष्ट है, वह सेवा के दौरान महाराष्ट्र सरकार को दिए गए वार्षिक विवरणों में झूठ लिखता रहा होगा, नहीं तो वहां ही आय से अधिक संपत्ति का प्रकरण बन जाता और वह पकड़ा जाता। संघ लोक सेवा आयोग ने कितनी लापरवाही से पूजा द्वारा दिए गए विवरणों की जांच की, यह तो इसी से स्पष्ट है कि साल-दर-साल वह विना पकड़े गए फर्जीवाड़ा करती रही।
 
यह भी कम चिंताजनक नहीं है कि पूजा खेड़कर ने जिन शारीरिक अक्षमताओं का दावा किया था, उनकी पुष्टि कराए बिना उसे नियुक्ति दे दी गई। यहां भी आयोग और नियुक्ति पत्र जारी करने वाले केंद्रीय सरकार के विभाग ने पर्याप्त और जरूरी पड़ताल की परवाह नहीं की। इन विवादों की चर्चा चल ही रही थी कि संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के इस्तीफे की खबरें मीडिया में गश्त करने लगीं। हालांकि, उनसे जुड़े सूत्रों ने समझाने की कोशिश की है कि इस्तीफे और पूजा प्रकरण में कोई संबंध नहीं है, पर क्या ही अच्छा होता, यदि उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए यह कदम उठाया होता।
 
पाठकों ने हिंदी की कालजयी कहानी हार की जीत पढ़ी होगी, जिसमें नायक बाबा भारती को एक ठग द्वारा अपंग बनकर उनका घोड़ा चुराने पर अपनी क्षति से अधिक इस बात की चिंता होती है कि लोग अब किसी असहाय पर विश्वास करना छोड़ देंगे। पूजा खेड़कर का प्रकरण सामने आने के बाद लोगों ने उन तमाम लोगों पर शक करना शुरू कर दिया है, जिन्हें आर्थिक या शारीरिक अक्षमताओं के कारण चयन में मदद मिली है। इनमें से अधिकांश बिना किसी झूठ के अपनी योग्यता के बल पर चुने गए होंगे, लेकिन पूजा ने सबको संदिग्ध बना दिया है। सोशल मीडिया पर चुन-चुनकर उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया गया है। कोई यह नहीं सोच रहा है कि पहले ही प्रकृति की ज्यादतियों के शिकार इन लोगों पर शक कर हम उन्हें अतिरिक्त घाव दे रहे हैं।