नई दिल्ली (एजेंसी)। दिल्ली के जाटों (Jats of Delhi) ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) का साथ कभी नहीं छोड़ा। वह बीते दो लोकसभा चुनाव में मोदी के साथ खड़े दिखे। इस बार के चुनाव में कांग्रेस व आम आदमी पार्टी गठबंधन और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई है। इसमें इनका समर्थन दोनों पक्षों के लिए मायने रखेगा। दिल्ली की सीमा हरियाणा के साथ लगती है। सीमावर्ती गांवों में जाटों की अच्छी संख्या है। इस कारण कई विधानसभा में ये निर्णायक भूमिका में हैं।
दिल्ली के कुल मतदाताओं में इनकी हिस्सेदारी तो मात्र 5% है, परंतु उत्तर-पश्चिमी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली में इनकी संख्या अधिक होने से राजनीतिक अहमियत बढ़ जाती है। यही कारण है कि सभी पार्टियां इन्हें अपने साथ जोड़ने का प्रयास करती हैं। इस बार विपक्षी दल किसानों से संबंधित मुद्दे और महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न मामले को लेकर हरियाणा के जाटों में भाजपा से नाराजगी की बात कही जा रही है। इसका असर दिल्ली के जाटों पर न पड़े इसे लेकर यहां के भाजपा नेता सतर्क हैं, क्योंकि पिछले दोनों लोकसभा चुनावों में इनके समर्थन से पार्टी ने तीनों लोकसभा सीटों पर बड़ी जीत प्राप्त की थी। भाजपा पश्चिमी दिल्ली सीट से जाट नेता को प्रत्याशी बनाती रही है। 2014, 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के पुत्र प्रवेश वर्मा को प्रत्याशी बनाया था। दोनों बार उन्हें जीत मिली थी। इस बार पार्टी ने इनकी जगह महिला जाट नेता पूर्व महापौर व दिल्ली प्रदेश भाजपा की महामंत्री कमलजीत सहरावत को टिकट दिया है। पार्टी ने चुनाव प्रभारी भी हरियाणा के पूर्व मंत्री व जाट नेता ओम प्रकाश धनखड़ को बनाया है।
पिछले चुनाव में आप व कांग्रेस के प्रत्याशी रहे नेता भाजपा में शामिल
पिछले चुनाव में कांग्रेस व आम आदमी पार्टी ने भी एक-एक जाट नेता को टिकट दिया था। कांग्रेस ने दक्षिणी दिल्ली से अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज विजेंदर सिंह को और आप ने पश्चिमी दिल्ली से बलवीर सिंह जाखड़ को उम्मीदवार बनाया था। इस बार चुनाव की घोषणा से पहले ही दोनों नेता भाजपा के खेमे में चले आए हैं। इससे भाजपा नेता चुनावी लाभ मिलने की उम्मीद लगाए हुए हैं।