मुंबई। गोल्ड लोन लेनेवाले (Gold Loan borrower) की मौत के बाद कर्जदार के परिजनों द्वारा गोल्ड लोन के भुगतान और उन्हें गोल्ड की वापसी के मामले में स्पष्ट नियम तय करने की दिशा में बैंक काम कर रहे हैं। ऐसा इसलिये किया जा रहा है ताकि गोल्ड कर्ज लेनेवाले की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी कर्ज की अदायगी कर पारिवारिक गोल्ड जूलरी या गोल्ड फिर हासिल कर सकें। बैंक मुख्य रूप से जिस योजना पर काम कर रही है उसके अनुसार कर्जदारों से विधिवत लिखित में प्राधिकार पत्र लिये जायेंगे कि उनकी मौत के बाद कौन कर्जवापसी करेगा और गोल्ड की प्राप्ति का अधिकार रखेगा।
मौजूदा वक्त में इस बाबत नियम स्पष्ट नहीं है। इसके चलते अक्सर कर्जदार की मौत के बाद मामला कानूनी पचड़े में फंस जाता है। ऐसे में कर्जदाता बैंक के पास गिरवी रखे गोल्ड की नीलामी के सिवा कोई रास्ता नहीं रह जाता है। गोल्ड लोन के मामले में नियम तय करने की जरूरत इसलिये भी है क्योंकि इससे कर्जदार की मौत के बाद उनके परिवार को गिरवी रखा हुआ पारिवारिक गोल्ड हासिल करने में सहूलियत होगी। जाहिर है कर्जदार के परिजन और नजदीकी रिश्तेदारों को इससे काफी राहत मिलेगी।
बैंक के शीर्ष स्तर के अधिकारियों के बीच इस मसले पर विचार – विमर्श चल रहा है और कर्जदारों से प्राधिकार पत्र लेने पर आम सहमति बनती नजर आई है। बैंक चाहते हैं कि एक मानक प्रारूप तय किया जाये जिससे इस परिस्थिति से कुशलतापूर्वक निपटा जा सके।
हालांकि राज्य संचालित कुछ बैंकों ने इस तरह का विकल्प अपने गोल्ड लोन धारकों को देना शुरु किया है लेकिन इसमें कुछ दिक्कतें हैं क्योंकि अभी इसको वैधानिक रूपरेखा के दायरे में नहीं लाया गया है। अग्रणी गोल्ड फाइनेंसिंग फर्म मुथुट फाइनेंस के मुताबिक, कानूनगो कमिटी की सिफारिशों के आधार पर कंपनी ने अपने ग्राहकों के लिये नामांकन प्रक्रिया शुरु करने की तैयारी की है। इसके तहत कर्जदार की मौत की स्थिति में उसके द्वारा नामित व्यक्ति को कर्ज अदा करना होगा और उसे ही गिरवी रखा सोना वापस किया जायेगा।
अक्सर ऐसे मामलो में मृतक कर्जदार के कई रिश्तेदार सामने आते हैं और कर्ज भुगतान और सोना हासिल करने के लिये अपना दावा पेश करते हैं। बैंक के लिये ऐसे में निर्णय लेना कठिन हो जाता है। अक्सर ऐसे मामले अदालत तक पहुंच जाते हैं जबकि बैंक अपने अधिकार के तहत इस तरह के गोल्ड की नीलामी कर कर्ज की वसूली करती है। फिलहाल अभी इस समस्या के समाधान के लिये विचार-मंथन चल रहा है लेकिन कर्जदार से ही प्राधिकार पत्र लेने का विकल्प ही सबसे अधिक कारगर और मुफीद लग रहा है।