सर्वोच्च सम्मान, कई संदेश

13 Feb 2024 14:42:56
 
Bharat Ratna 2024 Karpoori Thakur Lal Krishna Advani MS Swaminathan - Pratahkal
 
शेखर अय्यर : भारत रत्न 2024 (Bharat Ratna 2024) भारत रत्न का सम्मान दिए जाने और न दिए जाने के पीछे हमेशा से राजनीति होती रही है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इसे नया अर्थ और प्रासंगिकता दी है। प्रणब मुखर्जी, भूपेन हजारिका और नानाजी देशमुख हों या फिर लालकृष्ण आडवाणी और कर्पूरी ठाकुर, यह उन लोगों को सम्मानित करने की मोदी की राजनीति के स्पष्ट संकेत थे, जिन्हें कांग्रेस द्वारा नजर अंदाज और तिरस्कृत किया गया था। पूर्व प्रधानमंत्रियों पीवी नरसिम्हा राव और चौधरी चरण सिंह के साथ कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिए जाने की मोदी की नवीनतम घोषणा से यह पता चलता है कि उनकी सरकार भारत की समकालीन राजनीति और अर्थव्यवस्था में इन तीनों हस्तियों की भूमिका को कितना महत्व देती है। इन्हें क्रमशः पहली पीढ़ी के आर्थिक सुधारों, किसानों के हितों की वकालत करने वाले और बेहतर खाद्य उत्पादकता और सुरक्षा के लिए विज्ञान का उपयोग करने वाले चैंपियन के रूप में देखा जाता है। दिलचस्प यह है कि वे सभी 2024 के चुनावों के लिए नरेंद्र मोदी के अभियान के पसंदीदा विषय हैं। दरअसल, महान कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन को यह पुरस्कार 1960 के दशक में भारत के खाद्य संकट को खत्म करने के लिए हरित क्रांति को लाने में उनकी बड़ी भूमिका को मान्यता देता है। यह स्वामीनाथन की रणनीति ही थी, जिसकी बदौलत भारत के कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई। अमेरिकी क्षि वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग के सहयोग से बतौर वैज्ञानिक उनके काम के परिणामस्वरूप पंजाच, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को उच्च तपज की किस्म वाले बीज, पर्याप्त सिंचाई सुविधाएं और उर्वरक उपलब्ध कराए गए।
 
वर्षों बाद, 2004 से 2006 के बीच राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष के रूप में डॉ. स्वामीनाथन ने सिफारिश की थी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी), जिस पर किसान अपनी फसलें सरकार को बेचते हैं, वह औसत उत्पादन लागत से कम से कम 50 फीसदी ज्यादा होना चाहिए। डॉ. स्वामीनाथन के योगदान का महत्व इस तथ्य से समझा जा सकता है कि आज ऐसा कोई दिन नहीं बीतता, जब किसानों के संघ कानूनी गारंटी के रूप में सभी उपज के लिए, एमएसपी निर्धारित करने के लिए स्वामीनाथन फॉर्मूले को लागू करने की मांग न करते हों। यह महज संयोग तो नहीं हो सकता कि स्वामीनाथन को पुरस्कार तब दिया गया है, जब उपज की खरीद के लिए कानूनी गारंटी और बिजली के बिलों में संशोधन सहित अपनी लंबित मांगों के समर्थन में संयुक्त किसान मोर्चा और ट्रेड यूनियनों द्वारा अखिल भारतीय हड़ताल का आह्वान किया गया हो।
 
दूसरी तरफ, चुनावी वर्ष में नरसिम्हा राव और चरण सिंह को भारत रत्न पुरस्कार महज उनके योगदान को मान्यता नहीं है, बल्कि यह मतदाताओं की यादाश्त को ताजा करने का मोदी का तरीका है कि कैसे उन्होंने नेहरू-गांधी परिवार को चुनौती दी थी, जिससे सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के बारे में भाजपा का जो नैरेटिव रहा है, उसे ही मजबूती मिलती है।
 
इससे पहले वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा की गई थी। आडवाणी भाजपा के राम मंदिर आंदोलन का चेहरा थे, जिन्होंने 1992 के उन दृश्यों को देखा था, जब भीड़ द्वारा विवादित ढांचे को गिरा दिया गया था। कालांतर में इस आंदोलन ने एक लंबी कानूनी लड़ाई का रूप लिया, जिसकी परिणति सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले के रूप में हुई, जिसने भव्य मंदिर खोलने का मार्ग प्रशस्त किया। कर्पूरी ठाकर की भूमिका तो और भी महत्वपूर्ण है। वह सिर्फ ओबीसी राजनीति का चेहरा नहीं थे, बल्कि कांग्रेस के कट्टर आलोचक और बिहार में कांग्रेस विरोधी आंदोलन का गढ़ भी थे। बिहार के पहले ओबीसी मुख्यमंत्री के तौर पर ठाकुर राज्य में ओबीसी के लिए कोटा शुरू करने वाले पहले व्यक्ति थे। नरसिम्हा राव नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के पहले कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने 1991 में उदारीकरण को पहली लहर शुरू करने का राजनीतिक साहस दिखाया और 1996 तक बदलावों के लिए काम करते रहे, जब तक कि उनकी सरकार चुनाव हार नहीं गई। प्रधानमंत्री के रूप में अपने चुनौतीपूर्ण वर्षों के दौरान राव ने उस वक्त सोनिया गांधी के नजदीकी समझे जाने वाले शरद पवार और अर्जुन सिंह जैसे कांग्रेसी नेताओं की चुनौतियों का भी सामना किया। राव के कार्यकाल में गांधी परिवार और उनके समर्थकों के प्रभाव को कम किया गया, जिससे वह समकालीन कांग्रेस विरोधी नेताओं के लिए नायक बने। अयोध्या में विवादित ढांचे को बचाने में कथित विफलता के लिए सोनिया गांधी और दूसरे कांग्रेसी नेताओं ने राव को दोषी ठहराया, पर एक सुधारवादी के रूप में उनका कौशल इन सब पर हावी रहा। 1996 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के जीतने में विफल रहने पर सोनिया गांधी और उनके वफादार नेताओं ने खुले तौर पर राव की विरासत को अस्वीकार कर दिया, जिस कारण देवगौड़ा और गुजराल के नेतृत्व में एक गठबंधन हुआ, जिसे कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया। हालांकि दिसंबर, 2004 में अपनी मृत्यु तक राव डॉ. मनमोहन सिंह जैसे अपने वफादार नेताओं के लिए आदरणीय और अविभाजित आंध्र प्रदेश के लोगों के लिए राज्य के गौरवशाली पुत्र बने रहे। भाजपा का दावा है कि उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय में रखने की अनुमति न देकर कांग्रेस नेतृत्व ने उनका अपमान किया। राव को भारत रत्न सम्मान देने की घोषणा तब हुई है, जब आगामी अप्रैल-मई में लोकसभा चुनावों के साथ आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। तेलंगाना में भी राव को भारत रत्न दिए जाने की मांग बीआरएस जैसी पार्टियां लंबे समय से करती आई हैं। चरण सिंह मामले में, जो इंदिरा गांधी द्वारा केवल 24 सप्ताह के लिए प्रधानमंत्री बनाने के लिए दिए गए समर्थन के झांसे में आ गए थे, यह सम्मान जाट समुदाय में आज भी 'कुलक नेता' के रूप में प्रतिष्ठा के कारण उनकी प्रासंगिकता को रेखांकित करता है। उनकी राजनीति को महत्व देने वालों के लिए वह 1970 के दशक में गैर-कांग्रेसवाद का एक प्रमुख चेहरा थे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर किसानों के लिए उन्होंने जो किया, वह कृषि क्षेत्र के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उनके पोते और राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी को एनडीए में शामिल करने के प्रयासों की पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री मोदी के इस फैसले को देखा जा सकता है।
 
 
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