पूर्वी पाकिस्तान बनता बांग्लादेश

भारत को इस सोच से बाहर आना होगा कि विकट स्थिति में भी वह बांग्लादेश पर सिर्फ कूटनीतिक दबाव ही बना सकता है...

Pratahkal    07-Dec-2024
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Alekha
शेख हसीना सरकार के खूनी तख्तापलट के बाद से ही बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले जारी हैं। वहां से हिंदू कर्मचारियों के जबरन इस्तीफे लेने, उनकी जमीनों पर कब्जे, मकानों को जलाए जाने, मंदिर और मूर्तियों को तोड़े जाने एवं महिलाओं से दुष्कर्म के समाचार लगातार आ रहे हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और विश्व के बड़े मीडिया प्रतिष्ठान मुख्यतः इन हमलों की अनदेखी करते रहे, परंतु एक हिंदू संगठन के प्रमुख और इस्कान धर्मगुरू चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों को बांग्लादेश में हो रहे हिंदू दमन का संज्ञान लेने पर विवश किया है। चिन्मय और अन्य हिंदू नेताओं पर आरोप है कि उनकी चटगांव जनसभा में इस्कान का ध्वज बांग्लादेश के झंडे के ऊपर फहरा कर राजद्रोह किया गया। जिस आधार पर उनकी गिरफ्तारियां हुई हैं, उस आधार पर फुटबाल स्टेडियम में बैठे हर उस दर्शक को गिरफ्तार किया जा सकता है, जिसके पसंदीदा क्लब का झंडा बांग्लादेशी झंडे से ऊपर दिख जाए।
 
जिस दंड संहिता 121 और 124 के अंतर्गत राजद्रोह का मुकदमा कायम हुआ है, उसमें कार्रवाई के लिए गृह मंत्रालय की अनुमति आवश्यक है, परंतु ढाका पुलिस ने सीधे गिरफ्तारी कर ली। यह बांग्लादेश शासन और वहां की पुलिस की धृष्टता ही है कि वह सैंकड़ों मंदिरों पर हो रहे हमलों, हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे जघन्य अपराधों पर तो पूरी तरह निष्क्रिय है, लेकिन गृह मंत्रालय के आदेश पर 15 जुलाई से 8 अगस्त के बीच 'प्रदर्शनकारियों' पर दायर सभी मुकदमे वापस ले चुकी है। बांग्लादेशी पुलिस नितांत फर्जी मुकदमे में हिंदुओं की पकड़ धकड़ कर रही है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि बांग्लादेश नेशनल पार्टी के जिस नेता फिरोज खान की शिकायत पर हिंदू धर्मगुरू की गिरफ्तारी हुई, उसे बीएनपी ने इस बेहूदा शिकायत के लिए पार्टी से निलंबित कर दिया है। स्पष्ट है कि मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार हिंदू धर्मगुरू को हिंदू हितों की रक्षार्थ किए गए साहस के लिए सिखाना चाहती है। यह भी साफ अंतरिम सरकार यह चाहती है कि पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ न उतरें। चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी की अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बावजूद लोगों के अलावा दो और इस्कान गिरफ्तारी किया गया। इस्कान के खाते भी सीज किए गए हैं। उससे को भारत आने से रोका जा रहा है।
 
चिन्मय के वकील रमन राय पर हमले से खौफजदा कोई भी वकील पैरोकारी के लिए आगे नहीं आ दरअसल चटगांव की 25 अक्टूबर ऐतिहासिक हिंदू रैली से इस्लामी और यूनुस सरकार बौखलाई हुई है किसी भी तरह हिंदू नेतृत्व को चाहती है। बांग्लादेश में चार-पांच जारी हिंसा इस मायने में अलग है नकारने, छिपाने या कम करके पेश सबक है कि हिंदू स्वयं सड़कों पर अन्य संतों को कई बैंक जुड़े संतों जानलेवा उनकी रहा है। की कट्टरपंथी और वह कुचलना माह से कि इसे करने की नतीजों को बांग्लादेशी और विदेशी मीडिया ने तथ्यों की तरह पेश किया।
 
हिंदू बुद्धिस्ट क्रिश्चियन काउंसिल अनुसार तख्तापलट के पहले माह में ही अल्पसंख्यकों पर 2010 हमले हुए। बांग्लादेश के सबसे बड़े समाचार पत्र 'प्रोथोम आलो' ने अपने संवाददाताओं से कराई पड़ताल में 5 और 20 अगस्त के बीच 49 जिलों में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर 1068 हमलों की पुष्टि की। इन हमलों में नौ हिंदू मारे गए थे। इस समाचार पत्र के संवाददाता इनमें से 546 हमलों के स्वयं साक्षी रहे। बांग्लादेश पुलिस न सिर्फ हिंदू विरोधी हिंसा रोक पाने में पूरी तरह विफल है, बल्कि उसने हिंदुओं को ही निशाना बनाया हुआ है। चटगांव के हजारी लेन, रंगपुर में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हिंदुओं पर बर्बर लाठीचार्ज मुहिम चलाई जा रही है। इसी के अंतर्गत वायस आफ अमेरिका रेडियो चैनल द्वारा एक सर्वे कराकर बांग्लादेशियों से पूछा गया कि क्या अंतरिम सरकार में अल्पसंख्यक सुरक्षित हैं? यह सर्वे कितना फर्जी था, इसे इससे समझा जा सकता है कि मात्र 1000 व्यक्तियों के इस सर्वे में 927 उत्तरदाता मुसलमान थे। सर्वे में 64.1 प्रतिशत लोगों ने अंतरिम सरकार में अल्पसंख्यकों की स्थिति को शेख हसीना शासन से बेहतर बताया। इस फर्जी सर्वे के इसका उदाहरण है।
 
अल्पसंख्यकों की इच्छा के विरूद्ध बने पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में यदि अल्पसंख्यक खतरे में आते हैं तो उनकी रक्षा की नैतिक जिम्मेदारी भारत की ही बनती है। बांग्लादेश के संबंध में तो भारत की भूमिका और अहम हो जाती है, क्योंकि उसके निर्माण में उसका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। चूंकि वहां जब भी हिंदुओं पर हमले शुरू होते हैं, तब शरणार्थियों के जत्थे भारत की तरफ आते हैं, इसलिए भी अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों को बांग्लादेश का आंतरिक मामला कहकर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता। हालांकि भारत सरकार ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से अल्पसंख्यकों की जान- माल की रक्षा करने की अपील की है, परंतु यह पर्याप्त नहीं। जब बांग्लादेश का शासकीय तंत्र फिर से पूर्वी पाकिस्तान बनने की ओर चल पड़ा है, तब भारत को भी अपने रिश्तों का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए।
 
यदि भारत यह सोचता है कि डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद कूटनीतिक प्रयासों द्वारा वह बांग्लादेश पर दबाव बनाएगा तो तव तक देर हो सकती है। अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए भारत बांग्लादेश में संयुक्त फोर्स की तैनाती का दबाव बना सकता है। ऐसी मिसाल अफ्रीका में देखने को मिलती है, जहां अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए कुछ देशों में संयुक्त फोर्स की तैनाती की गई है। समय आ गया है कि बांग्लादेश के भीतर ही अल्पसंख्यकों के लिए स्वायत्तशासी क्षेत्रों के निर्माण के लिए जोर दिया जाए। अपनी भौगोलिक स्थिति के चलते बांग्लादेश बहुत सी आवश्यक वस्तुओं के लिए भारत पर निर्भर है। भारत को आर्थिक प्रतिबंध और व्यापारिक अवरोध समेत सैन्य हस्तक्षेप का विकल्प भी खुला रखना चाहिए। भारत को इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा कि विषम से विषम स्थिति में भी वह सिर्फ कूटनीतिक या अंतरराष्ट्रीय दबाव का ही सहारा ले सकता है। भारत को यह देखना होगा कि वह इसके इतर क्या कर सकता है?