दक्षिण कोरिया में घटनाएं अचानक नाटकीय हो गई। वहां राष्ट्रपति यून सुक येओल ने मार्शल लॉ की घोषणा कर दी और उसके कुछ ही घंटे बाद उसे वापस भी ले लिया, क्योंकि वहां मार्शल लॉ लगाने का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ। विपक्षी दल के साथ दक्षिण कोरिया के लोग भी सड़कों पर आ गए और राष्ट्रपति को अपना फैसला वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। लोगों ने साफ तौर पर इस दलील को नकार दिया कि दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ लगाने की जरूरत है। दुनिया में दक्षिण कोरिया को एक मजबूत लोकतंत्र के रूप में देखा जाता है। वहां लोकतंत्र में विगत पचास वर्ष में पहली बार ऐसी स्थिति आई है, जब किसी राष्ट्रपति को यह लगा कि देश में मार्शल लॉ लगाना चाहिए। राष्ट्रपति यून ने मार्शल लॉ की घोषणा करते हुए जो तर्क दिए, उन पर गौर करना चाहिए। अव्वल तो उन्होंने उत्तर कोरिया का हवाला दिया और इसके अलावा, राज्य विरोधी लोगों का भी जिक्र किया।
उन्होंने बताया कि राज्य या सरकार विरोधी या एंटी स्टेट लोगों की वजह से मार्शल लॉ लगाना जरूरी हो गया था। हालांकि, विपक्ष और देश के लोग राष्ट्रपति की इस दलील को पचा नहीं पाए। वास्तव में, राष्ट्रपति यून के सामने शुरू से ही घरेलू या आंतरिक समस्याएं ज्यादा रही हैं। घरेलू राजनीतिक समस्याओं से आसानी से निजात पाने के लिए ही उन्होंने मार्शल लॉ लगाने का फैसला किया। उन्हें शायद ऐसे दमदार विरोध की आशंका नहीं थी। मार्शल लॉ की घोषणा के बाद आपात स्थिति में संसद में प्रस्ताव रखा गया और मार्शल लॉ लगाने के फैसले को नकार दिया गया। कुछ ही देर में मार्शल लॉ को हटाना पड़ा। अब सवाल यह पैदा हो गया है कि राष्ट्रपति को हटाया जाएगा या उन पर महाभियोग चलेगा। इसमें शक नहीं कि दक्षिण कोरिया में विपक्ष ने राष्ट्रपति के इस फैसले के प्रति बहुत सख्त रूख अपनाया है। खास बात यह भी है कि राष्ट्रपति यून की खुद की पार्टी में भी उनका विरोध हुआ। इससे यह भी लगता है कि राष्ट्रपति अपनी पीपुल्स पावर पार्टी को भी साथ लेकर नहीं चल पाए। वह चाहते थे कि जो एंटी स्टेट तत्व देश को नुकसान पहुंचा रहे हैं, उन्हें खत्म किया जाए और इसके लिए उन्होंने सेना को शक्ति प्रदान कर दी थी।
हालांकि, राष्ट्रपति के फैसले के बाद घटनाक्रम में तेजी आ गई और मार्शल लॉ के जमने से पहले ही उसे वापस लेने को मजबूर कर दिया गया। विपक्षी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ने विरोध का नेतृत्व किया है और अपने सभी सांसदों को तत्काल वोट के लिए संसद बुला लिया। मार्शल लॉ को पलटने के लिए जिस राजनीतिक समर्थन की उम्मीद थी, उसे जुटाने में विपक्ष ने देरी नहीं की। यह भी कहना चाहिए कि मार्शल लॉ को लागू करने के लिए जैसे राजनीतिक समर्थन की जरूरत थी, राष्ट्रपति यून के पास उसका अभाव हो गया और उन्हें फैसला वापस लेना पड़ा। मार्शल लॉ का इस्तेमाल आपात स्थिति में दक्षिण कोरिया में पहले भी हुआ है। पिछली बार इसका इस्तेमाल 1979 में हुआ था। 1987 में दक्षिण कोरिया संसदीय लोकतंत्र बना और उसके बाद से कभी भी मार्शल लॉ नहीं लगाया गया था। अत वहां की राजनीति में यह एक निर्णायक मुकाम है, जब मार्शल लॉ लगाने की कोशिश हुई है। मार्शल लॉ का नुकसान यह होता है कि पूरी ताकत फौज को मिल जाती है और नागरिक अधिकार समाप्त हो जाते हैं। राजनीति या मीडिया पर एक तरह से रोक लग जाती है। चूंकि दक्षिण कोरिया की छवि उदारवादी लोकतंत्र की रही है और उसे एक आदर्श देश के रूप में देखा जाता है।
आर्थिक रूप से भी वह बहुत मजबूत है और दुनिया के दूसरे देशों के साथ उसके संबंध बहुत अच्छे हैं, इसलिए वहां मार्शल लॉ लगाने की कोशिश ने दुनिया को चकित कर दिया। अगर इसका असली कारण हम खोजेंगे, तो 2022 में यून सुक येओल राष्ट्रपति चुने गए थे और उसके कुछ ही समय बाद विपक्षी पार्टी ने चुनाव जीतकर संसद में खुद को मजबूत कर लिया। इससे राष्ट्रपति यून को परेशानी होने लगी थी, विपक्ष उनके प्रयासों को रोक दे रहा था। इसके साथ ही, यून के लिए आम लोगों का समर्थन भी बहुत नीचे खिसक गया। यून की पत्नी ने भी बहुत महंगे उपहार स्वीकार किए, इससे भी यून की लोकप्रियता घटी और विवाद बढ़ गए। उपहार को भ्रष्टाचार से जोड़ा गया और यून को राष्ट्रीय टेलीविजन पर माफी मांगनी पड़ी। हालांकि, उन्होंने इसकी जांच कराने से मना कर दिया। देश में ऐसी अनेक समस्याएं पैदा हुई, जिन्हें यून संभाल नहीं पाए और उन्होंने मार्शल लॉ लगाने का फैसला कर लिया। अब स्थितियां उनके बिल्कुल विपरीत चली गई हैं, उनके खिलाफ महाभियोग की तैयारी चल रही है। यून के लिए यह एक बड़ा झटका है, लेकिन उज्वल छवि वाले दक्षिण कोरिया के लिए यह उससे भी बड़ा झटका है।
दक्षिण कोरिया को बहुत अच्छी नजरों से देखा जाता है, वहां के नेताओं की अपनी विशेष छवि रही है, उन्हें दुनिया में सम्मान मिलता रहा है। ताजा घटनाक्रम से निश्चित रूप से दक्षिण कोरिया की साख पर तात्कालिक असर हो सकता है। यून ने राजनीति का जो रास्ता दिखाया है, उसे लेकर चिंता बढ़ गई है। क्या किसी नेता को घरेलू स्तर पर राजनीतिक समस्याएं घेर लें, तो वह देश में मार्शल लॉ लगाकर सबको संकट में डाल सकता है? ऐसी उम्मीद कम से कम किसी दक्षिण कोरियाई नेता से अभी तक नहीं थी। यहां अन्य लोकतांत्रिक देशों के लिए ध्यान देने की बात है कि जो लोकतांत्रिक संस्थाएं होती हैं, उनका मजबूत जमीन पर खड़ा होना जरूरी है। अगर संस्थाएं मजबूत न हों, तो कोई भी नेता व्यक्तिगत परेशानी की वजह से संस्थाओं को संकट में डाल सकता है। दक्षिण कोरिया ने एक सबक सिखाया है कि वहां लोकतांत्रिक संस्थाएं कितनी मजबूत हैं, वहां कैसे लोकतंत्र को पाला-पोसा गया है, उसकी जड़ों को कैसे गहरे स्थापित किया गया है। दक्षिण कोरिया में लोकतंत्र मजबूत है, तभी अपने एक नेता के गलत फैसले से देश अपने को बचा पाया। विपक्ष ने तेजी दिखाई व लोग भी मुखर हुए और यह साबित हो गया कि देश में अगर लोकतंत्र की बुनियाद मजबूत हो, तो फिर चंद लोगों के बुरा चाहने से कुछ नहीं बिगड़ता। लोकतंत्र को सही ढंग से काम करना है, तो लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत होना पड़ेगा। यह भी साबित हुआ कि लोग अगर सजग रहें, तो लोकतंत्र में आ रही गिरावट को भी रोका जा सकता है।