मुंबई (कार्यालय संवाददाता) । महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Elections) के लिए बुधवार को वोटिंग (Voting) हो गई और अब नतीजों का इंतजार है। इस बीच उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की शिवसेना (ShivSena) ने भाजपा (BJP) और आरएसएस (RSS) पर तीखा हमला बोला है। उद्धव सेना के मुखपत्र सामना (Saamana) में लेख लिखकर हमला बोला गया है। लेख में कहा गया कि यह चुनाव ऐसा था, जिसमें लोकतंत्र को बंधक बनाने की कोशिश की गई। यहां देश के प्र.म., गृहमंत्री, यूपी के मुख्यमंत्री डटे रहे। इसके अलावा मध्य प्रदेश, राजस्थान समेत कई अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी चुनाव में उतारा गया। इसके अलावा पूरी सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल करते हुए चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की गई।
उद्धव सेना ने कहा कि महाराष्ट्र में लोकतंत्र को बंधक बनाने की कोशिश की गई, लेकिन मराठी लोगों ने समझदारी का परिचय दिया है। शिवसेना ने कहा कि चुनाव को लोकतंत्र का पर्व कहा जाता है, लेकिन भाजपा ने पैसों का पर्व मनाया। शिवसेना ने लिखा, जिस तरह से सत्ताधारी दलों ने पैसे खर्च किए हैं, वह अच्छी बात नहीं है। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन का कहना है कि उनकी छवि को खराब करने के लिए 500 करोड़ रूपये खर्च किए गए हैं। इसी तरह महाराष्ट्र को देखें तो इन लोगों ने 2000 करोड़ रूपये की रकम खर्च की होगी।
सामना में लिखा गया है, चुनाव के एक दिन पहले बक्सों में करोड़ों रूपये बरामद किए गए। यह रकम तब मिली, जब वोटिंग में कुछ ही घंटे बचे थे। इससे साफ है कि बड़े पैमाने पर कुछ विधानसभाओं में पहले ही रकम पहुंच चुकी थी। यही नहीं उद्धव सेना ने चुनाव आयोग पर भी हमला बोला और कहा कि जिस तरह से लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ हुआ, उसे रोकने के लिए कोई कदम चुनाव आयोग ने नहीं उठाए। क्या वह सो रहा था। यही नहीं विनोद तावड़े पर हमला बोलते हुए सेना ने कहा कि उनके होटल के कमरों से कैश बरामद हुआ। फिर भी चुनाव आयोग ने तेजी दिखाते हुए उनके खिलाफ केस दर्ज नहीं किया और न ही कुछ जवाब आया। उद्धव सेना ने लिखा कि तावड़े के पास 5 करोड़ रूपये होने का आरोप लगाया गया, लेकिन चुनाव आयोग ने कागज पर 9 लाख रूपये की रकम ही दिखाई। उद्धव ठाकरे गुट ने यह आरोप भी लगाया कि हर क्षेत्र में हजारों विभिन्न मतदाताओं के नाम काट दिए गए, जिनके बारे में जाना जाता है कि वे भाजपा के खिलाफ मतदान करेंगे। सामना में लिखा गया कि पूरी तरह से चुनाव को सांप्रदायिक करने की कोशिश हुई। इसके बाद भी चुनाव आयोग देखता रहा और वह मूकदर्शक की तरह काम करता रहा।