बुलडोजर न्याय पर निर्णायक फैसला

अपराधशास्त्र का स्थापित सिद्धांत यही है कि जिसने अपराध किया है, सजा उसी को दी जाए, लिहाजा अतिक्रमणकारी को ही सजा मिलनी चाहिए, उसके परिजनों को नहीं।

Pratahkal    15-Nov-2024
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Alekh
कोर्ट द्वारा बुधवार को बुलडोजर कार्रवाई की सीमा तय करना एक दूरदर्शी फैसला माना जाएगा। अदालत ने साफ कर दिया हैकि किसी संपत्ति को सिर्फ इसलिए नहीं तोड़ा जा सकता, क्योंकि उस संपत्ति का मुखिया कथित आरोपी है। साथ ही, अदालत ने बिंदुवार दिशा-निर्देश जारी करके ऐसे मामलों की सांविधानिक स्थिति भी साफ कर दी है। दरअसल, पिछले कुछ महीनों से कई राज्य सरकारों पर ये आरोप लग रहे थे कि ऐसी कार्रवाइयों में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है, जिससे न्याय की मूल अवधारणा खंडित हो रही है। हालांकि, खबर यह भी है कि इन कार्रवाइयों का नुकसान अल्पसंख्यकों की तुलना में बहुसंख्यक समुदाय को ज्यादा हुआ है।

बहरहाल, माना यही जाता है कि देश में कुल भूमि का करीब 20 प्रतिशत हिस्सा अतिक्रमणकारियों के कब्जे में है। दिल्ली में ही एमसीडी और डीडीए की जमीनों पर, जो फुटपाथ या अन्य उपयोग के लिए तय हैं, पक्के निर्माण करके होटल, गैराज, टैक्सी स्टैंड तक बना लिए गए हैं। इससे आम नागरिकों को होने वाली परेशानियों का बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है। ऐसे अंतिक्रमण दुर्घटना तक को न्योता देते हैं। इसी तरह, देश में कहीं भी थोड़ी सी खाली सरकारी जगह पर कोई न कोई निर्माण कर लिया गया है। नहीं कुछ तो, धार्मिक ढांचा ही खड़ा कर दिया जाता है, जिसको हटाने में तंत्र के हाथ-पांव फूलने लगते हैं। वक्फ अधिनियिम के तहत तो किसी की जमीन वक्फ की संपत्ति घोषित की जा सकती है, जिस पर कोई अन्य दावा भी नहीं कर सकता। इस पृष्ठभूमि में यदि सुप्रीम कोर्ट के नए दिशा-निर्देशों को पढ़ा जाए, तो नई राह बनती दिख से मांग चुक की रही है। होता यह है कि कानून की दृष्टि या आम लोगों की नजर से भी अवैध अतिक्रमण चुभते हैं और उस पर कार्रवाई की की जाती है, लेकिन मुमकिन है कि कार्रवाई करने वाली सरकारी एजेंसियों से भी हो या दस्तावेज का सावधानी से अध्ययन न करना बुलडोजर को लिवा लाए, इसलिए ऐसी कार्रवाइयों में प्रक्रिया के पालन बात अदालत ने कही है। अदालत का स्पष्ट मानना है कि तंत्र और आम आदमी, यहां तक कि जिसकी संपत्ति ध्वस्त की जानी है, सभी को न्याय मिलना ऐसे मामलों का मानवीय पक्ष कहीं अधिक मजबूत है। यदि किसी आरोपी का घर ध्वस्त कर दिया जाता है, तो बिना किसी गलती के उसके परिजन भी सजा पा जाते हैं, जो हृदयविदारक दृश्य पैदा कर सकता है। हालांकि, दबंगई में किए गए अतिक्रमण पर कार्रवाई उचित जान पड़ती है। जिन मामलों में शक सुबहा हो, वहां पूरे दस्तावेज का बारीकी से अध्ययन होना ही चाहिए, लेकिन जिन मामलों में पहली नजर में ही तस्वीर साफ हो जाए, उनमें जल्द से जल्द कार्रवाई सुनिश्चित करना आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं किया गया, तो एक दिन अव्यवस्था चरम पर पहुंच सकती है। वाकई, अगर किसी ने सही तरीके से जमीन खरीदा है और उसके पास हर दस्तावेज मौजूद हैं, तो उसे ध्वस्त करना तंत्र के लिए गले की फांस बन सकता है।


इससे जनता में भी आक्रोश पैदा होता है, क्योंकि आदमी सब कुछ सह लेता है, पर यह नहीं सह सकता कि जिस मकान को उसने अपने खून पसीने से सींचा है, जिसकी एक-एक ईंट जोड़ने के लिए मेहनत की है, उसे सिर्फ शक के बिना पर कोई ध्वस्त कर दे। वास्तव में, अतिक्रमण के मामले में तंत्र कहीं अधिक कुसूरवार नजर आता है, क्योंकि अवैध निर्माण को रोकना उसकी जिम्मेदारी होती है, लेकिन उसके अधिकारी इसे अनदेखा करते हैं। कभी-कभी तो इसके लिए पैसों का भी लेन-देन होता है। ऐसा ही एक मामला मुझे याद है, जब दिल्ली हाईकोर्ट में अवैध अतिक्रमण का एक मामला इसलिए नहीं टिक सका, क्योंकि संबंधित विभाग के अधिकारियों ने लीपापोती कर दी। नतीजतन, उस जगह पर आज अतिक्रमण कहीं अधिक तेजी से हो रहा है। चूंकि अपने देश में कम नहीं है, इसलिए ऐसी जमीनों से सरकारी खजाने को चूना लग रहा है। मगर होता यह है कि यह सब एक लंबी प्रक्रिया है और बुलडोजर चलाने का आदेश तुरंत मिल जाता है, इसलिए आसान रास्ता अपना लिया जाता है। जबकि, ऐसी कार्रवाइयों में जमीन के एक टुकड़े को छोड़कर सब कुछ ध्वस्त हो जाता है। इसीलिए, सुप्रीम कोर्ट ने उचित ही इसके लिए प्राधिकरण के माध्यम से सुनवाई करने की बात कही है।

अपेक्षा रहेगी कि यह फास्ट ट्रैक कोर्ट से भी अधिक तेजी से काम करेगा और अंतिम आदेश पारित करके अनधिकृत संरचना के भाग्य का उचित फैसला करेगा। इससे सरकारों के पास कितनी जमीन निकल सकती है और जनता के हित में कितने काम हो सकते हैं, इसका महज अनुमान ही लगाया जा सकता है। अपराधशास्त्र का एक महत्वपूर्ण और स्थापित सद्धांत है कि जिसने अपराध किया है, सजा उसी को दी जाए। लिहाजा, अतिक्रमणकारियों को ही जेल मिलनी चाहिए, उनके परिजनों को नहीं। हां, यदि पूरी जांच के बाद जमीन अतिक्रमित साबित हो, तो उस पर बुलडोजर चलाने से ऐतराज नहीं होना चाहिए। इसमें शायद ही न्याय के सिद्धांत की अवहेलना होगी।

विशेषकर भू माफियाओं के मामले में यही दिखा है कि उनके पास अपने दावे से संबंधित सही कागजात नहीं थे। जब कागज दुरूस्त न हो, तब कानूनी कार्रवाई से किसी को क्यों ऐतराज होगा? अगर ऐसे मामलों में बुलडोजर नाहीं चलेगा, तो जिसने उस पर कब्जा जमा रखा है, वह तो अपना हक बढ़ाता चला जाएगा और निर्दोषों को तंग करता रहेगा। इससे सरकार पर भी उंगली उठेगी और देश का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। हालांकि, यह पूरी कार्रवाई कानून और व्यवस्था के तहत ही हो, जिसको बनाए रखने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट ने उचित ही सरकारों पर डाल दी है। यह पूरा प्रकरण भूमि सुधार की तरफ भी इशारा कर रहा है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हर संपत्ति मालिक अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक करे और उस पर उचित कर चुकाए। अतिक्रमणकारियों की संख्या चाहिए। यही कारण है कि अपने दिशा निर्देश में अदालत ने ऐसी कार्रवाई के लिए समय-सीमा तय करने, नोटिस भेजने, जवाब देने का मौका देने और समझौता योग्य होने पर जुर्माना अदा करके समझौता करने जैसे प्रावधान बताए हैं।