उमर के सिर सजा कांटों का ताज

18 Oct 2024 14:00:00
Omar Abdullah
 
अश्विनी कुमार - नेशनल कांफ्रेंस के उप-प्रधान और फारूक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) बुधवार को केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री बन गए हैं। इससे पहले वह 5 जनवरी, 2009 में पहली बार छह साल के लिए मुख्यमंत्री बने थे, पर इस बार पांच साल के लिए मुख्यमंत्री रहेंगे। उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस को काफी वोट कश्मीर घाटी के साथ-साथ जम्मू में भी मिले हैं।
 
पंद्रह साल पहले बने मुख्यमंत्री और अब के मुख्यमंत्री में जमीन आसमान का फर्क है। उमर के सिर पर इस बार कांटों का नया ताज है। उनके सामने चुनौतियां भी इफरात हैं। उनको हर कदम सोच-समझकर लेना होगा। चाहे उनके केंद्र के साथ अच्छे रिश्ते हों या उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा के साथ। उमर अब्दुल्ला को यह भी याद रखना होगा कि इस बार उन्हें जम्मू से मजबूत विपक्ष मिला है। भाजपा को इस बार हिंदू वोट बैंक वाले जिलों में पहली बार 29 सीटें मिली हैं, इसलिए विधानसभा के अंदर और विधानसभा के बाहर उमर अब्दुल्ला को एक मजबूत विपक्ष मिलेगा। उमर के लिए इनको संभालना मुश्किल होगा, क्योंकि उनका कांग्रेस के साथ गठबंधन है। कांग्रेस अभी सरकार में शामिल नहीं हुई है। कांग्रेस के नेता तारिक हामिद ने कहा है कि जब तक केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं देगी, तब तक कांग्रेस मंत्रिमंडल में नहीं शामिल होगी।
 
जमीनी संकेतों को अगर देखें, तो अगले पांच साल उमर अब्दुल्ला के लिए काफी मुश्किल होने वाले हैं, क्योंकि लोगों की बड़ी उम्मीदें उन पर टिकी हैं, चाहे कश्मीर की जनता हो या जम्मू के लोग। कश्मीर घाटी में नेशनल कांफ्रेंस को इसलिए काफी वोट मिले, क्योंकि पार्टी ने चुनावी घोषणापत्र में अनुच्छेद 370 व 35 ए की बहाली और जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के वादे किए थे। इनके साथ सालाना 'दरबार मूव' को दोबारा शुरू करने, बढ़‌ती बेरोजगारी, कश्मीर घाटी के साथ-साथ जम्मू की जनता को भी न्याय दिलाने और कानून व्यवस्था को बहाल रखने की चुनौतियां भी नई सरकार को तंग करेंगी।
 
गौर करने की बात है कि अपनी मांगों या वादों को पूरा करने के लिए उमर को केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा। केंद्रीय नेताओं से उन्हें अच्छे रिश्ते बनाने पड़ेंगे। किसी तरह की तल्खी काम नहीं आएगी। अगर वह ऐसा करने में कामयाब हो जाते हैं, तो केंद्र सरकर पूर्ण राज्य का दर्जा जल्दी दे सकती है। वैसे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने चुनावी भाषणों में भी कहा है कि नई सरकार बनने के बाद राज्य का दर्जा दिया जाएगा, लेकिन केंद्र ने इसके लिए कोई समय सीमा नहीं तय की है।
 
उमर अब्दुल्ला ने दरबार मूव की दोबारा बहाली की बात की है, पर यह तभी हो पाएगा, जब उप-राज्यपाल और केंद्र से हरी झंडी मिलेगी। केंद्रशासित जम्मू-कश्मीर के कानूनों के मुताबिक, महत्वपूर्ण विषयों पर उप-राज्यपाल की सहमति जरूरी होगी। नेशनल कांफ्रेंस को उम्मीद है कि राज्य का दर्जा की मांग शायद केंद्र पूरी कर दे, पर इसमें देरी होती है, तो जम्मू-कश्मीर सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट जाने के रास्ते खुले हैं। नेशनल कांफ्रेंस चाहती है कि बिना किसी खींचातानी के ये बड़े मुद्दे सुलझ जाएं, तो कश्मीर के लोग खुश हो जाएंगे और लोगों के बीच पार्टी की नाक भी रह जाएगी। जम्मू-कश्मीर में दरबार मूव की बहाली का मुद्दा नेशनल कांफ्रेंस के साथ-साथ भाजपा के लिए भी काफी महत्वपूर्ण बन चुका है। दरबार मूव की परंपरा 1872 से 2021 तक चलती रही। इसके तहत सर्दियों के छह महीने में सरकारी दफ्तर श्रीनगर से जम्मू आ जाते हैं और गर्मियों में वापस श्रीनगर चले जाते हैं। दरबार मूव की इस पुरानी परंपरा को उप- राज्यपाल मनोज सिन्हा ने तीन साल पहले यह कहकर खत्म कर दिया था कि हर साल सामान शिफ्टिंग पर करीब 130 करोड़ रूपये का खर्चा आता है। मनोज सिन्हा का तर्क यह था कि डिजिटल जम्मू-कश्मीर बनने के बाद दरबार मूव का रहना ठीक नहीं है। राजा-महाराजाओं द्वारा शुरू किए गए दरबार मूव को खत्म करने पर जम्मू की जनता भी भाजपा से नाराज है।' जम्मू चैम्बर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्रीज' के प्रधान अरूण गुप्ता ने कई बार कहा है कि जब से दरबार या सरकार का जम्मू आना बंद हुआ है, तब से जम्मू का बिजनेस खत्म हो गया है। दरबार मूव वापस लाने की मांग जम्मू में जोर पकड़ रही है और कभी न कभी आने वाले दिनों में भाजपा के 29 विधायकों पर जम्मू से दवाव आएगा। गौरतलब है, 1987 में तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने भी इसी तर्क पर दरबार मूव खत्म करके राजधानी को श्रीनगर में सीमित कर दिया था, तब करीब दो महीने जम्मू में हड़ताल होने के बाद फारूक अब्दुल्ला को वह आदेश वापस लेना पड़ा था। उनके बेटे उमर अब्दुल्ला को भी आने वाले दिनों में इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। सबसे ज्यादा परेशानी का सामना उमर अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर के नए कानूनों और मुख्यमंत्री की ताकत को लेकर आने वाली है। पहली बार जब वह 2009 से 2015 तक मुख्यमंत्री थे, तब उनको पूरी शक्ति प्राप्त थी, लेकिन अब किसी केंद्रीय सेवा के सचिव के स्थानांतरण के लिए उनको उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा की सहमति की जरूरत होगी। बहरहाल, जिस तरह से नेशनल कांफ्रेंस को जनादेश मिला है, उससे अपेक्षाएं और बढ़ गई हैं। उमर अब्दुल्ला के लिए लोगों की सभी मांगों को पूरी करना मुश्किल होगा। राजनीतिक तौर पर कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पीडीपी और जम्मू में भाजपा आसानी से सरकार चलाने नहीं देगी। महबूबा मुफ्ती ने शपथ समारोह के बाद ही मांग कर दी है कि नई विधानसभा को 5 अगस्त, 2019 के केंद्र सरकार के फैसले को गलत ठहरना चाहिए। इस काम को तत्काल अंदाज देना उमर अब्दुल्ला के लिए खतरनाक होगा। हालांकि, उमर अब्दुल्ला ने भाजपा को जवाब देने के लिए राजौरी के नौशेरा विधानसभा सीट से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रविंदर रैना को हराने वाले नेशनल कांफ्रेंस के नेता सुरिंदर चौधरी को उप-मुख्यमंत्री बना दिया है, मतलब उमर ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। कांग्रेस को जम्मू के हिंदू इलाके से सीट न मिलने के कारण नेशनल कांफ्रेंस के लिए भी जम्मू में दिक्कतें बढ़ गई हैं। डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला ने भी माना है कि उनके बेटे उमर अब्दुल्ला को इस बार काफी मेहनत करनी पड़ेगी।
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