नीरजा चौधरी - महाराष्ट्र और झारखंड (Jharkhand and Maharashtra) विधानसभा के साथ-साथ दो लोकसभा और 48 विधानसभा क्षेत्रों के उप-चुनाव के लिए तारीखों का एलान मंगलवार को कर दिया गया। ये चुनाव काफी अहम हैं, क्योंकि हरियाणा का करीब-करीब हारा हुआ रण जीतकर भाजपा ने विपक्ष के सभी समीकरण ध्वस्त कर दिए हैं। कांग्रेस अगर हरियाणा जीत गई होती, तो मुमकिन है कि महाराष्ट्र व झारखंड चुनावों में वह गठबंधन में अधिक दम-खम दिखा पाती, लेकिन अब माना जा रहा है कि उस पर सहयोगी दलों का दबाव बढ़ गया है। ऐसे में, आगामी चुनावों में जीत की खुराक ही अब उसे नई ऊर्जा देने का काम कर सकती है। मगर, एनडीए गठबंधन के लिहाज से ये चुनाव पूरे देश में नैरेटिव बदलने का एक माध्यम होंगे। हरियाणा की जीत ने भाजपा को लोकसभा चुनाव के झटके से उबरने में मदद की है। अब अगर महाराष्ट्र व झारखंड को भी एनडीए अपने नाम कर ले गया, तो भाजपा का यह दावा फिर से मजबूत हो जाएगा कि लोगों का विश्वास भगवा झंडे पर कायम है। बहरहाल, राष्ट्रीय राजनीति में महाराष्ट्र की अहमियत को समझना कोई मुश्किल काम नहीं है। वह देश का वह सूबा है, जहां से उत्तर प्रदेश के बाद सर्वाधिक 48 सांसद लोकसभा में पहुंचते हैं। उत्तर प्रदेश से 80 सदस्य चुने जाते हैं। महाराष्ट्र देश की वित्तीय राजधानी है, जिसके कारण भी इसे खासा महत्व दिया जाता है। लोकसभा चुनाव में विपक्षी 'इंडिया' ब्लॉक के खाते में यहां की 30 सीटें गई थीं, जिसका एक बड़ा कारण महाअघाड़ी सरकार का गिरना माना गया। तब कहा गया था कि राष्ट्रवादी कांग्रेस और शिव सेना में हुई टूट के विरोध में आम लोगों ने 'इंडिया' के पक्ष में मतदान किया है। मगर इस बार भी क्या सहानुभूति का यह कार्ड वैसे ही काम करेगा, इसके बारे में अभी साफ-साफ नहीं कहा जा सकता? ऐसा इसलिए भी, क्योंकि कई लोगों का मानना है कि जनता एक ही मुद्दे पर हर चुनाव में वोट नहीं करती। वास्तव में, महावुति व महाअघाड़ी, दोनों गठबंधन के लिए इस बार वहां बराबरी का मुकाबला है, जिसमें बाजी किस गठबंधन के हाथ लगेगी, इसका पत्ता 23 नवंबर को चलेगा। यहां मुद्दे लगातार बदल रहे हैं और 20 नवंबर को मतदान के दिन तक कौन-कौन से मुद्दे हावी रहेंगे, इसकी भविष्यवाणी मुश्किल है। अगस्त में लग रहा था कि बदलापुर कांड का चुनाव पर काफी असर पड़ेगा। उस समय नाबालिग बच्चियों के साथ कथित छेड़छाड़ के विरोध में मानो पूरा महाराष्ट्र सड़कों पर उतर आया था। फिर शिवाजी की मूर्ति गिरने के बाद अचानक से माहील बदल गया और 'मराठा अस्मिता' की चर्चा होने लगी। अब पूर्व मंत्री और चर्चित नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या का मसला सुर्खियों में है।
लोगों में यह बहस चलने लगी है कि क्या महाराष्ट्र फिर से 90 के दशक में लौट रहा है, जब 'गैंग' का बोलबाला हुआ करता था? जाहिर है, कानून व्यवस्था को लेकर यहां चिंताएं बढ़ गई हैं। यहां 'लड़की बहिन योजना' भी चुनावी मुद्दा बन सकती है। इस योजना के तहत महिलाओं को मासिक 1500 रूपये देने की बात कही गई है। पिछले दिनों एकनाथ शिंदे सरकार ने दिवाली बोनस देने का भी एलान भी किया है। माना जा रहा है कि जिस तरह से मध्य प्रदेश में 'लाडली लक्ष्मी योजना' चुनावी हवा बदलने में सफल साबित हुई, उसी तरह का असर इस योजना का भी पड़ सकता है।
वैसे, महाराष्ट्र की तरह ही झारखंड में भी यह साफ-साफ नहीं कहा जा सकता कि कौन सा मुद्दा जनता को प्रभावित करेगा? हालांकि, हमंत सोरेन सरकार की भी नजर बतौर वोट बैंक महिलाओं पर है और उसने दिसंबर से 'मइया सम्मान योजना' की राशि बढ़ाकर 2500 रूपये करने का एलान किया है। पहले इस योजना के तहत 18 से 60 साल तक की महिलाओं को 1000 रूपये मासिक दिए जा रहे थे। इस योजना के जवाब में भाजपा ने भी गोगो दीदी योजना लाने का वायदा किया था, जिसमें महिलाओं को 2100 रूपये प्रतिमाह सहायता राशि देने की घोषणा की गई थी।
जाहिर है, महिलाओं को अपनी तरफ लुभाने की कोशिश सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों कर रहा है। जोर इसी बात पर है कि आधी आबादी को नकद राशि दी जाए। माना जा रहा है कि दिल्ली, हरियाणा या फिर बिहार में सरकार को महिला हितैषी योजनाओं का लाभ मिला, तो झारखंड में भी इसका फायदा हो सकता है। बहरहाल, यहां कुछ और मुद्दे भी चुनावी फिजां में तैर रहे हैं, विशेषकर भ्रष्टाचार का मुद्दा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की जेल यात्रा को विरोधी दल चुनावों में खूब उछाल सकते हैं। चंपाई सोरेन की बगावत को भी भुनाने का प्रयास किया जा सकता है। यहां आदिवासी बनाम गैर आदिवासी भी एक बड़ा मसला है। माना जा रहा है कि इसका उसी तरह असर हो सकता है, जिस तरह हरियाणा में जाट बनाम गैर जाट का हुआ था। हरियाणा में जाट वोट- बैंक पर जोर देने के कारण ही संभवतः दलित छिटककर भाजपा के साथ चले गए। वैसे, झारखंड में भाजपा के सामने सीटों का बंटवारा एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है, जिसे झारखंड मुक्ति मोर्चा चुनावों में हवा देगी। झारखंड में सत्ता विरोधी भावना भी दिख रही है। संभवतः इससे पार पाने की कोशिश झारखंड मुक्ति मोर्चा ने शुरू भी कर दी है और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन मैदान में सक्रिय हो गई हैं। जिन-जिन इलाकों में वह जा रही हैं, वहां उनकी मांग बढ़ रही है। नया चेहरा होने के कारण लोगों का उन पर विश्वास बढ़ रहा है। वह नई नैरेटिव गढ़ने में सफल होती दिख रही हैं। मगर चुनावों तक यह असर कितना कायम रहेगा, अभी नहीं कहा सकता। यहां 13 और 20 नवंबर को चुनाव होंगे, जबकि नतीजों का एलान महाराष्ट्र के साथ 23 नवंबर को होगा।
कुल मिलाकर, इन दोनों राज्यों के नतीजे केंद्र की राजनीति को व्यापक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। एनडीए और 'इंडिया 'ब्लॉक, दोनों इनके नतीजों को अपने पक्ष में करने के प्रयास पहले ही शुरू कर चुके हैं। यही कारण है कि दोनों राज्यों की सरकारें अपनी आखिरी कैबिनेट बैठक में जनता को लुभाने के प्रयास करती दिखीं। साफ है, इन विधानसभा चुनावों में हावी तो स्थानीय मुद्दे ही रहेंगे, लेकिन इनके परिणाम का असर अखिल भारतीय होगा।