पाकिस्तान और खानदानी राज

09 Jul 2023 12:02:29
 
 
Pratahkal - Lekh Update - Pakistan and family rule
 
मरिआना बाबर
मानसून की बारिश ने जून के खत्म होने से पहले ही रावलपिंडी, इस्लामाबाद और दूसरे नजदीकी कस्बों व शहरों को बेशक भिगो दिया था। लेकिन तमाम मौसम विशेषज्ञ इसे पूर्व - मानसून की बारिश कह रहे हैं। वजह यह है कि मानसून के अमूमन 15 जुलाई के बाद आने की परंपरा रही है। पर अब पूरी दुनिया में दिख रहे पर्यावरणीय बदलावों की वजह से बरसात के मौसम की कोई तारीख तय नहीं है । आजकल आलम यह है कि दिन हो या रात, कभी भी बारिश शुरू हो जाती है। अगर कई दिन तक बारिश न हो, तो भयानक उमस की मार झेलनी पड़ती है। जब उमस और न झेली जा रही हो, तब हम समझ लेते हैं कि बारिश बस होने को है।
 
सोशल मीडिया पर भारत के शहरों में जल भराव की तस्वीरें देखते हुए लगता है, मानो पाकिस्तान के किसी बड़े शहर को देख रहे हैं। यहां भी वही समस्या है। जल के निकासी की जगह पर कोई ढांचा खड़ा कर दिया गया है, समुद्र के पास की जमीन का सही इस्तेमाल नहीं हुआ है या गलत ढंग से तैयार ढांचे पानी के प्राकृतिक प्रवाह को रोक रहे हैं। पुल के नीचे से जाते रास्ते (अंडरपास ) और ऊपर जाते रास्ते (ओवरपास) दोनों ही देशों में किसी नदी की तरह मालूम होते हैं।
 
खैर, मेरे सामने वाले बगीचे में लीची का मौसम जा चुका है। हालांकि वह पुराना पेड़ काफी छंट गया है, जिसमें पिछली सर्दियों में खूब मीठे और रसीले फल आए थे, जिन्हें बांटा भी गया था। देसी आमों से लदा आम का पेड़ भी हल्का दिखता है। इसके कच्चे आम अचार और चटनी के लिए बांटे जा चुके हैं। जो आम पेड़ में काफी ऊंचाई पर लगे हैं, वे पकने पर खुद-ब-खुद गिर जाएंगे। मोगरा मोतिया का पौधा फूलों से लदा है । बरसात इसको मुफीद लगती है। वैसे देखा जाए, तो बरसाती लिली के अलावा सभी फूल, खासकर गुलाब, बरसात के मौसम में अपने शबाब पर नहीं रहते।
 
इस दौरान, ईद से ठीक पहले सभी की नजरें दुबई पर थीं, जहां पाकिस्तान के दो प्रमुख राजनीतिक दलों के शीर्ष नेतृत्व बातचीत के लिए मिल रहे थे। हैरत की बात है कि अपने देश में मिलने के बजाय दोनों दिग्गज नेताओं ने दुबई को चुना, जहां इनके अपने महल हैं। इसकी मुख्य वजह दरअसल यह है कि पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल- एन) के नेता नवाज शरीफ लंदन में स्व-निर्वासन पर रह रहे हैं, और फिलहाल पाकिस्तान नहीं आ सकते । इस मुलाकात में नवाज शरीफ के साथ, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के आसिफ अली जरदारी, बिलावल भुट्टो और मरियम नवाज शरीफ समेत दोनों दलों के कई बड़े नेता शामिल हुए। एक ही शख्स गठबंधन सरकार से नदारद दिखे, वह थे, जमीयत-ए-उलेमा- इस्लाम (जेयूआई) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान, जिन्होंने वीडियो लिंक की मदद से बैठक में शिरकत की।
 
दिलचस्प बात यह है कि यह लेख छपने तक नवाज शरीफ और उनकी पुत्री मरियम नवाज सऊदी अरब के प्रिंस मुहम्मद बिल सलमान के न्योते पर दुबई से जेद्दा पहुंच चुके होंगे। प्रिंस सलमान और नवाज शरीफ की मुलाकात को खासी तवज्जो मिल रही है। वजह यह है कि पाकिस्तान की राजनीति में सऊदी अरब ने हमेशा से काफी दिलचस्पी दिखाई है। पाकिस्तान लौटने पर नवाज शरीफ को मिलने वाला प्रिंस सलमान का समर्थन उनके लिए काफी महत्वपूर्ण है। वैसे भी, अफगानिस्तान से वापसी के बाद अब पाकिस्तान की राजनीति में अमेरिका की कोई दिलचस्पी रह नहीं गई है।
 
सवाल यह है कि पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनेगा कौन? बिलावल भुट्टो जरदारी या फिर खुद नवाज शरीफ अपने चौथे कार्यकाल के लिए मैदान में उतरेंगे। वैसे भी, सितंबर में पाकिस्तान के निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति के बाद, नवाज शरीफ की पाकिस्तान वापसी की पूरी उम्मीदें हैं। ऐसा महसूस होता है कि सत्तर साल के बाद भी पाकिस्तान में वंश-आधारित राजनीति आने वाले दशकों में जारी रहेगी । इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ अकेली ऐसी पार्टी थी, जो ऐसी राजनीति से दूर रही। लेकिन पूरी संभावना है कि इस साल के अंत में चुनाव होने के वक्त तक इमरान या तो चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दिए जाएंगे या फिर जेल में होंगे। यह देखना बाकी है कि वे अपनी गैर- मौजूदगी में अपने नजदीकी पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को पार्टी का नेतृत्व करने का जिम्मा सौंपते हैं या नहीं।
 
जनरल तलत मसूद के मुताबिक, पाकिस्तान की वंश - आधारित राजनीति से सामंती तौर-तरीकों को ताकत मिली है और मजबूत लोकतांत्रिक परंपराओं को पनपने का मौका नहीं मिल सका है। प्रमुख राजनीतिक दलों पर विशिष्ट अधिकार प्राप्त वंशों के कब्जे ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर किया है। दुबई में संपन्न बैठक में शामिल रहे लोगों के मुताबिक, आसिफ अली जरदारी नवाज शरीफ से कह चुके हैं कि अविश्वास प्रस्ताव के जरिये इमरान खान सरकार के सत्ता से बेदखल होने के बाद उनकी पार्टी ने अपनी रजामंदी से प्रधानमंत्री का पद शहबाज शरीफ को सौंप दिया था। लेकिन अगले चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बनने की बारी बिलावल भुट्टो जरदारी की होगी। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि अगर नवाज शरीफ पाकिस्तान लौटते हैं, और आगामी चुनाव में पंजाब जीत लेते हैं, तो बिलावल भुट्टो को प्रधानमंत्री का पद मिलने में काफी मुश्किल हो सकती है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) पंजाब में काफी कमजोर है और अगर नए राजनीतिक दल इस्तेहकाम-ए- पाकिस्तान ने पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के वोट बैंक में सेंध लगाई, तो पंजाब में नया गठबंधन भी बन सकता है। इस्तेहकाम-ए-पाकिस्तान पार्टी की कमान इमरान खान के पूर्व सहयोगी जहांगीर तरीन के हाथों में है। इस पार्टी में शामिल ज्यादातर लोग वे हैं, जो इमरान खान को छोड़कर आए हैं।
 
यह देखना भी दिलचस्प है कि अब यह कहा जा रहा है कि सेना को राजनीति में दखल नहीं देना चाहिए और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनावों को सुनिश्चित करना चाहिए। पाकिस्तान में नौ मई को जो अराजकता फैली, उसके बाद सेना जिस तरह से इमरान खान और उनके समर्थकों के पीछे पड़ी थी, उससे यह महसूस हुआ, मानो यह नवाज शरीफ और आसिफ अली जरदारी को मजबूत करना चाह रही हो। अब इन हालात में 'चुनाव के नतीजे ही भविष्य की सरकार की मजबूती और कौन सरकार बनाएगा, यह तय करेंगे।

Powered By Sangraha 9.0