क्या हम फिर बना पाएंगे नालंदा, तक्षशिला

भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा युवा विद्यार्थियों को विदेश भेजने का ‘गौरव" मिल रहा है, पर यह हमारी उच्च शिक्षा व्यवस्था की विफलताओं, सीमाओं और चुनौतियों को भी रेखांकित करता है।

Pratahkal    20-May-2023
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Pratahkal - Lekh - Will we be able to rebuild Nalanda, Takshashila 
 
हरिवंश चतुर्वेदी
 
उच्च शिक्षा (Higher education) में नया सत्र शुरू होने में बस दो महीने शेष हैं। विश्वविद्यालयों (Universities) और कॉलेज कैंपस (College campus) में फिलहाल शिक्षक व विद्यार्थी परीक्षाओं में व्यस्त हैं। गरमी की धूप तेज होने के साथ ही शिक्षा परिसरों में सन्नाटा बढ़ता जाएगा, किंतु पूरी संभावना है कि इन्हीं परिसरों में आगामी महीनों में उच्च शिक्षा का परिदृश्य तेजी से बदलेगा । हमारी उच्च शिक्षा व्यवस्था में क्या नए सुधार और बदलाव होने जा रहे हैं?
 
पहली बात, तीन साल पहले जिस राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 की घोषणा की गई थी, उसकी कुछ खास बातों पर अभी अमल होना बाकी है। राष्ट्रीय स्तर पर 'यूजीसी, एआईसीटीई' और 'मेडिकल कमीशन ऑफ इंडिया' आदि की जगह जिन नियामक संस्थाओं की स्थापना होनी है, उनके गठन से संबंधित कानूनों का अभी संसद में पारित होना बाकी है। संसद के पिछले कई सत्रों में इन संस्थानों के गठन से जुड़े कानूनों को पारित करने की सुर्खियां मीडिया में सामने आईं, किंतु ऐसा हो नहीं पाया। संसद का मानसून सत्र भी 18 जुलाई को शुरू होना है। क्या इस बार कुछ हो पाएगा?
 
दूसरी बात, देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों और कुछ निजी विश्वविद्यालयों में एनईपी के अंतर्गत चार वर्षीय यूजी पाठ्यक्रमों और 'एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट' जैसे प्रावधानों पर तेजी से काम चल रहा है, किंतु अभी इन प्रमुख नीतियों की भविष्य में क्या स्थिति होगी, यह शिक्षा से जुड़े बड़े वर्ग को नहीं मालूम। अभी भी कई राज्यों में एनईपी को लेकर कई आशंकाएं हैं। लोग पूछते हैं कि चार वर्षीय यूजी पाठ्यक्रम के लिए अतिरिक्त शिक्षक, पुस्तकें, कक्षाएं और लेबोरेटरी कहां से आएंगी ?
 
उच्च शिक्षा के पिछले सत्र (2022-23) में एक बड़ी उपलब्धि रही 53 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में यूजी कक्षाओं में प्रवेश की एकीकृत प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी) का संचालन । इस परीक्षा में 9.68 लाख प्रवेशार्थियों ने भाग लिया था। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी के अनुसार, 2023 की सीईटी परीक्षा समूचे भारत में और भारत के बाहर 24 शहरों में 21 मई से 31 मई, 2023 तक संचालित की जाएगी। हालांकि, सीयूईटी से राज्यों के विश्वविद्यालयों का जुड़ना बाकी है। तीसरी बात, यह पहलू भी छिपा नहीं है कि दशकों से विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षाओं में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद भयंकर रूप ले चुका है। गरीब वर्ग के विद्यार्थियों को अनेक प्रवेश परीक्षाओं में भाग लेने की मजबूरी में पिसना पड़ता है । सीयूईटी निश्चित रूप से एक प्रगतिशील कदम माना गया, किंतु इसके साथ ही कोचिंग का एक बड़ा धंधा पनप गया। पहले ही देश के करोड़ों युवा कोचिंग के आर्थिक-मानसिक बोझ से दबे जा रहे थे। कोटा में हर साल अनेक युवा आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाते हैं।
 
चौथी बात, भारतीय उच्च शिक्षा से जुड़ी एक ज्वलंत समस्या है प्रतिभा पलायन । बड़ी संख्या में भारतीय विद्यार्थी विदेश पढ़ने चले जाते हैं। यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी  हानिकारक है और भारतीय उच्च शिक्षा सवाल उठ खड़े होते हैं। संसद में शिक्षा राज्य मंत्री सुभास सरकार ने बताया था कि कोविड के तत्काल बाद उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले भारतीय युवाओं की तादाद 68 प्रतिशत बढ़ी है। 2021 में विदेश जाने वाले युवाओं की संख्या 4.45 लाख थी, जो 2022 में 7.50 लाख हो गई। ध्यान रहे, 2017 से 2022 के बीच के छह वर्षों में 30 लाख भारतीय युवा उच्च शिक्षा के लिए विदेश गमन कर चुके हैं। इनमें से कितने भारत लौटकर आएंगे, कहना मुश्किल है। भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा युवा विद्यार्थियों को विदेश भेजने का 'गौरव' मिल रहा है, जो हमारी उच्च शिक्षा व्यवस्था की विफलताओं, सीमाओं और चुनौतियों को भी रेखांकित करता है। क्या हमारा देश सिंगापुर, हांगकांग, यूएई की तरह भारत को उच्च शिक्षा का एक लोकप्रिय हब बना सकता है? क्या हम देश के प्रमुख शहरों में विदेशी विद्यार्थियों को आकर्षित करने के समुचित इंतजाम कर सकते हैं? क्या हम विकसित देशों की तरह भारतीय उच्च शिक्षा की छवि सुधारने, उसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग (Branding) करने और विदेशी विद्यार्थियों (Foreign students) को भारत लाने के लिए संगठिन प्रयास कर सकते हैं? क्या यह काम सिर्फ 'स्टडी इंडिया पोर्टल' (Study india portal) बनाने से हो जाएगा? पांचवीं बात, देश में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए विदेशी विश्वविद्यालयों को अपने कैंपस स्थापित करने के सवाल पर पिछले दो दशक से बहस होती रही है। यूजीसी ने इस दिशा में एक कदम उठाने से पहले शिक्षाविदों और नागरिकों की राय जानने के लिए जनवरी, 2023 में भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के कैंपस स्थापित करने से संबंधित प्रस्तावित नियमावली को जारी किया । इसके अंतर्गत विदेशी विश्वविद्यालयों को अनेक रियायतें दी गईं, जो भारतीय विश्वविद्यालयों को नहीं मिलती हैं। भारतीय विश्वविद्यालय इस बात से क्षुब्ध हैं कि हम विश्व गुरू बनने के लिए विदेशी विश्वविद्यालयों का सहारा लेते समय देशी विश्वविद्यालयों के हितों की रखवाली की चिंता नहीं कर रहे हैं। यह सवाल उठ रहा है कि विदेशी संस्थानों को अधिकांश नियमों से छूट मिलेगी, लेकिन उनकी अपनी कोई जवाबदेही नहीं होगी। वे कितने विदेशी प्रोफेसर लाएंगे या देशी विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर को ज्यादा पैसे देकर कितना नुकसान करेंगे? आज उच्च शिक्षा की गुणवत्ता सुधारना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। अधिकांश विश्वविद्यालय और कॉलेज अभी भी अपनी गुणवत्ता को अपेक्षित मानकों के अनुरूप सुधार नहीं पाए हैं। उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए 1986 की राष्ट्रीय नीति के तहत 1993-94 में नैक एवं एनबीए जैसी एक्रेडिटेशन संस्थाओं की स्थापना की गई थी। किंतु पिछले तीन दशकों में मात्र 20 प्रतिशत विश्वविद्यालयों और कॉलेजों का ही एक्रेडिटेशन हो पाया है, जिनमें मुश्किल से 5 से 10 प्रतिशत संस्थानों को ही 'ए', 'ए प्लस' या 'ए प्लस प्लस' ग्रेड मिल पाए हैं। बस उम्मीद ही है कि एक्रेडिटेशन के क्षेत्र में भारत 'वाशिंगटन एकॉर्ड' के अनुरूप अपने संस्थानों को चुस्त-दुरूस्त कर पाएगा।
 
कुल मिलाकर, उच्च शिक्षा के नए सत्र 2023-24 में अनेक सुधारों और बदलावों की संभावना है। क्या हम नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को ढंग से लागू कर पाएंगे? क्या हम नालंदा और तक्षशिला जैसे उच्च शिक्षा के आदर्श मंदिरों को फिर खड़ा कर पाएंगे?