संजय गुप्त : भारत में उड्डयन सेवा की शुरूआत स्वतंत्रता के पहले टाटा एयरलाइंस (Tata Airlines) के नाम से टाटा समूह के जेआरडी टाटा की ओर से की गई थी। बाद में इसका नाम बदलकर इंडियन एयरलाइंस (Indian Airlines) किया गया । यह टाटा समूह की सबसे प्रतिष्ठित कंपनियों में से एक थी। कुछ वर्षों बाद समाजवादी नीतियों से प्रभावित नेहरू सरकार ने उसका राष्ट्रीयकरण कर दिया। पिछले वर्ष टाटा समूह ने उसे खरीद कर फिर से अपने हाथ में ले लिया। एक समय एअर इंडिया दुनिया भर में धाक थी, लेकिन सरकारी कंपनी के रूप में उसकी दुर्गति होती चली गई। इस दुर्गति की मिसाल मिलना कठिन है। एक के बाद एक सरकारों ने एअर इंडिया का जमकर दोहन किया। चूंकि अन्य सार्वजनिक उपक्रमों की तरह एअर इंडिया में भी आवश्यकता से अधिक लोगों की भर्तियां की गईं, इसलिए उसकी हालत खस्ता होती गई। हालांकि समय - समय पर सरकारों ने उसकी दशा सुधारने के कई जतन किए और इस क्रम में करोड़ों रूपये खपाए गए, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली । एअर इंडिया की दशा सुधारने के लिए उसमें इंडियन एयरलाइंस के विलय का भी कदम उठाया गया, लेकिन उससे भी बात नहीं बनी। इसके बावजूद नए विमानों की खरीद का सिलसिला कायम रहा। इससे एअर इंडिया का घाटा और बढ़ा। आखिरकार उसके निजीकरण की पहल शुरू हुई। यह पहल इसलिए भी करनी पड़ी, क्योंकि जैसे- जैसे निजी एयरलाइंस आती गई, सरकारी कंपनी के तौर पर एअर इंडिया की हालत बिगड़ती गई। एक तो उसका संचालन आर्थिक नियमों के तहत नहीं किया जा रहा था और दूसरे, उसमें उस सेवाभाव की कमी थी, जो सेवा क्षेत्र की किसी कंपनी में होना चाहिए था। न तो एअर इंडिया के विमानों का रखरखाव अच्छा था और न ही वह यात्रियों को अपेक्षित सुविधाएं देने में समर्थ थी । इसके चलते एक ब्रांड के रूप में उसकी छवि गिरती चली गई । एक समय तो ऐसा आया कि उसके निजीकरण की कोशिश भी नाकाम होने लगी, क्योंकि सरकार जिन शर्तों पर उसे बेचना चाहती थी, उन पर कोई उसे खरीदने को तैयार नहीं था । आखिरकार एअर एंडिया को डूबने से बचाने के लिए सरकार ने कमर कसी। 2014 में मोदी सरकार ने एअर इंडिया समेत अन्य सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश का बीड़ा उठाया। हालांकि कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों को यह रास नहीं आया, लेकिन मोदी सरकार अपने इरादे पर अटल रही ।
एअर इंडिया यूरोपीय कंपनी एयरबस से 250 और अमेरिकी कंपनी बोइंग से 220 नए विमान खरीदने जा रही है। इस सौदे के संपन्न होने पर प्रधानमंत्री मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन, फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों और ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक (PM Rishi Sunak) ने एक-दूसरे को बधाई दी। इससे पता चलता है कि यह सौदा कितना बड़ा है। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन (President Joe Biden) ने बोइंग से विमान खरीद के सौदे की सराहना करते हुए कहा कि इससे उनके देश में 10 लाख नौकरियों के अवसर पैदा होंगे। राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा कि 250 विमानों की खरीद के लिए एयरबस के साथ एअर इंडिया का सौदा भारत और फ्रांस के बीच गहन रणनीतिक और मैत्रीपूर्ण साझेदारी में मील का पत्थर साबित होगा। चूंकि एअर इंडिया के लिए नए विमान उपलब्ध कराने के लिए एयरबस और विमानों के इंजन बनाने वाली ब्रिटिश कंपनी राल्स रायस में भी समझौता हुआ, इसलिए ऋषि सुनक ने भी उसकी सराहना की । स्पष्ट है कि अतंरराष्ट्रीय कूटनीति की दृष्टि से भी इस सौदे का एक महत्व है। यह बताता है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों से भारत की नजदीकी बढ़ रही है। भारत ने इसका ध्यान रखा कि इतने अधिक विमानों की खरीद का आर्डर किसी एक देश की कंपनी न जाए। टाटा समूह ने यह जानते हुए भारत की कूटनीति में सहयोग दिया कि अलग-अलग कंपनियों से विमान खरीद उनका रखरखाव करना चुनौती भरा होगा। हालांकि मोदी सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश का एक लक्ष्य तय कर रखा है, मगर उसे पूरा कर पाना मुश्किल हो रहा है। आशा की जाती है कि सरकार निजीकरण के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाएगी, क्योंकि नवरत्न कंपनियों को छोड़कर अधिकांश सार्वजनिक उपक्रम सरकार और करदाताओं पर एक बोझ ही हैं। एअर इंडिया की ओर से नए विमानों की खरीद के इतने बड़े सौदे पर जहां हर किसी ने प्रसन्नता व्यक्त की और भारतीयों को खुशी महसूस हुई, वहीं विपक्षी दलों के नेताओं ने किसी को बधाई देने की जरूरत नहीं समझी। पता नहीं ऐसा क्यों हुआ, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इन दिनों कांग्रेस (Congress) समेत कई विपक्षी दल वामपंथी सोच से ग्रस्त हैं। वे निजी कंपनियों को फलते-फूलते हुए नहीं देखना चाहते। कांग्रेस लगातार यह कहती रहती है कि मोदी सरकार सार्वजनिक उपक्रमों को बर्बाद कर रही है । उसे एअर इंडिया की सफलता की कहानी पर ध्यान देना चाहिए। और भी अच्छा होगा कि वह वामपंथी सोच से बाहर निकले, अन्यथा भारतीय उद्योग जगत उस पर अपना भरोसा खो सकता है।
टाटा समूह ने एअर इंडिया को खरीदने के साथ उसकी कायापलट करने का जो निश्चय किया था, उसके परिणाम दिखने लगे हैं। पिछले दिनों इस एयरलाइंस ने पहली बार अपना मुनाफा घोषित किया और पिछले सप्ताह एक साथ 470 विमानों की खरीद का आर्डर दिया। इन विमानों के अलावा 370 और विमानों को खरीदने की भी योजना है। इस तरह यह विमान खरीद का विश्व का सबसे बड़ा आर्डर होगा । एअर इंडिया के बेड़े में नए विमान शामिल होने से उसका कायाकल्प होगा। टाटा समूह ने कहा भी है कि वह एयरलाइन सिक्योरिटी, कस्टमर सर्विस, टेक्नोलाजी, इंजीनियरिंग, नेटवर्क और मानव संसाधन की दिशा में बड़े बदलाव की यात्रा पर है। हालांकि विमानों के इतने बड़े बेड़े को संभालना एक चुनौतीपूर्ण काम होगा, लेकिन टाटा समूह की साख देखते हुए आशा की जा रही है कि वह उम्मीदों पर खरा उतरेगा। यह उम्मीद इसलिए भी की जा रही है, क्योंकि भारत में उड्डयन क्षेत्र तेजी से उभर रहा है और एअर इंडिया के पास तमाम ऐसे इंटरनेशनल रूट हैं, जो व्यस्त रहते हैं । एक तथ्य यह भी है कि प्रवासी भारतीयों समेत आम भारतीय बड़ी संख्या में हवाई यात्रा कर रहे हैं। ऐसे में एअर इंडिया जल्द ही एक सफल और विश्व की सबसे बड़ी विमानन कंपनी बन सकती है। यदि ऐसा होता है तो यह भारत के लिए गौरव की बात होगी ।