सृजन पाल सिंह…..खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर हत्याकांड में कनाडा के अपुष्ट आरोपों का भारत ने अविलंब जिस प्रकार से प्रतिकार किया, वह वैश्विक पटल पर एक नई वैश्विक शक्ति के उभार का संकेत है। कनाडा एक विकसित देश है। नाटो और जी - 7 का सदस्य है । अमेरिका जैसी महाशक्ति बगलगीर है। कुछ साल पहले तक यह कल्पना नहीं की जा सकती थी कि भारत जैसा देश कनाडा को किसी मामले में ऐसे जवाब देगा, लेकिन आज यह वास्तविकता है। भारत अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी क्षमताओं को प्रदर्शित करने से नहीं कतराता है। भारत पर आरोप लगाने से पहले कनाडा के प्रधानमंत्री स्टिन ट्रूडो को उम्मीद रही होगी कि फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ इस कूटनीतिक युद्ध में उनका समर्थन करेंगे। हालांकि किसी ने सीधे - सीधे प्रत्यक्ष रूप से उनका समर्थन नहीं किया। उलटे टूडो ने खुद को और कनाडा को उपहास का पात्र बना दिया।
यह पहली बार नहीं जब किसी पश्चिमी देश ने भारत के साथ ऐसा बर्ताव किया है। कुछ समय पहले की बात है, जब भारत ने ब्रिटिश टाइफून के बजाय फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का फैसला किया तो ब्रिटेन ने भारत को दी जाने वाली सहायता का रोना रोया और नई दिल्ली पर अपने प्रति कृतज्ञ न होने का आरोप मढ़ा। यूक्रेन युद्ध के दौरान नाटो ने भारत पर रूस के साथ आर्थिक संबंध तोड़ने के लिए दबाव डाला और भारत को तटस्थता की स्थिति छोड़ने के लिए मनाने का भरसक प्रयास किया। दोनों ही मामलों में भारत अपनी स्थिति पर कायम रहा । उसने अपने हितों को प्राथमिकता दी और अपने रणनीतिक हितों को दूसरों पर थोपने की कोशिश करने वाली पश्चिमी शक्तियों के सामने नहीं डिगा ।
भारत ने बिना कोई युद्ध छेड़े अपने वैश्विक प्रभाव में व्यापक विस्तार किया है । यह सब कैसे संभव हुआ है ? इसका पहला कारण है भारत की सैन्य शक्ति । भारत एक जिम्मेदार परमाणु शक्तिसंपन्न राष्ट्र के रूप में अंतरराष्ट्रीय मामलों में महत्वपूर्ण प्रभाव रखता है। यह सैन्य शक्ति भारत के प्रति गलत मंशा रखने वालों को सावधान रहने पर मजबूर करती है, क्योंकि नया भारत आत्मरक्षा में जवाबी कार्रवाई से नहीं हिचकता । जब पाकिस्तान पोषित आतंकियों ने 2016 में उड़ी और 2019 में पुलवामा पर हमला किया तो भारत ने दोगुनी ताकत के साथ जवाब दिया । उड़ी के जवाब में गुलाम जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के लांच पैड पर सर्जिकल स्ट्राइक की और पुलवामा के प्रत्युत्तर में भारतीय लड़ाकू विमानों ने सीमा रेखा लांघ कर पाकिस्तान के बालाकोट में हवाई हमला किया, जहां जैश-ए-मोहम्मद के अड्डों को निशाना बनाया गया। हम उस देश की पहचान को बहुत पीछे छोड़ आए हैं जो 2008 के मुंबई वाले रक्तरंजित आतंकी हमले का घूंट चुपचाप पी गया था ।
दूसरा कारण यह है कि भारत एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति है। आज भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और उसकी आर्थिकी बड़े देशों के बीच सबसे तेजी से बढ़ रही है। यहां एक विशाल उपभोक्ता बाजार और पर्याप्त आर्थिक शक्ति वाला एक उभरता हुआ मध्यम वर्ग है। स्मार्टफोन से लेकर कारों तक सभी उत्पादों के लिए भारत उम्मीदों से लबरेज बाजार है। यह भारत को अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश के लिए एक आकर्षक गंतव्य बनाता है। चूंकि विकसित देशों की दिग्गज कंपनियों को इससे बहुत लाभ होता है तो वे भारत विरोधी रूख अपनाने से हिचकते हैं। कनाडा के मामले में भी यही हुआ । इससे पहले 2020 में जब चीन और भारत में सीमा पर गतिरोध कायम था, तब भी भारत ने कई चीनी कंपनियों और एप्स पर प्रतिबंध लगाकर बीजिंग को बहुत कड़ा जवाब दिया था।
भारत की प्रतिष्ठा के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी विश्वसनीयता भी बढ़ी है । यह प्रतिष्ठा सद्भावना से जुड़ी है, जिसका प्रभाव एशिया और अफ्रीका के कई देशों में स्पष्ट दिखता है। कई देश भारत को मार्गदर्शक और भरोसेमंद मित्र के रूप में मानते हैं और वैश्विक मंच पर उनके हितों की वकालत करने में उसकी भूमिका की सराहना करते हैं । इसका एक उदाहरण अफ्रीकी संघ को जी -20 में शामिल कराने का है जो भारत की पहल पर ही संभव हुआ। भारत की वैक्सीन कूटनीति ने भी वैश्विक पटल पर अमिट छाप छोड़ी। घरेलू स्तर पर चुनौतियों का सामना करने के बावजूद भारत ने तमाम गरीब देशों को टीके वितरित किए। जबकि कनाडा जैसे विकसित देश वैक्सीन उत्पादक न होने के बावजूद अपने ही नागरिकों के लिए टीकों की जमाखोरी के लिए आलोचना का सामना करते रहे। योग और आयुर्वेद जैसी पद्धतियों के प्रभाव से भी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राचीन भारतीय ज्ञान ने वैश्विक प्रभाव डाला है। अपनी सांस्कृतिक शक्ति के दम पर भी भारत विश्व को अभिभूत कर रहा है। अपनी प्राचीन गौरवशाली विरासत को भारत पुनर्स्थापित करने में लगा है।
दुनिया भर में फैले करीब दो करोड़ भारतीय प्रवासियों ने अपनी मेधा से भी भारत की प्रतिष्ठा को नया आयाम दिया है। व्यापार, प्रौद्योगिकी से लेकर राजनीति तक प्रवासी भारतीय छाए हुए हैं। गूगल, माइक्रोसाफ्ट और आइबीएम जैसी तमाम दिग्गज कंपनियों की कमान भारतीय मूल के लोगों के हाथ में ही है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक अपनी भारतीय जड़ों और सनातन धर्म की पृष्ठभूमि पर गर्व करते हैं । औपनिवेशिक दमन काल से लेकर भारतीय विरासत और विज्ञान की दुनिया भर में मान्यता भारत के प्रति पश्चिमी देशों के रवैये में परिवर्तन को दर्शाती है। भारत अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का दरवाजा खटखटा रहा है। भारत के दावे को व्यापक समर्थन भी मिल रहा है। कई मामलों में भारत विरोधी रूख अपनाने वाले तुर्किये जैसे देश सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के मामले में भारत का समर्थन कर रहे हैं। स्पष्ट है कि नया भारत अंतरराष्ट्रीय मामलों में महज दर्शक बनकर नहीं रहने वाला, बल्कि एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए सक्रिय खिलाड़ी की भूमिका निभाने के लिए तैयार है । एक विराट संस्कृति के धनी इस विशाल राष्ट्र का अब यह नया कर्तव्य है । (पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सलाहकार रहे लेखक कलाम सेंटर के सीईओ हैं )