श्रीनगर (एजेंसी) : कश्मीर में अलगाववादी और आतंकी ही नहीं, मुख्यधारा की सियासत से जुड़े कई दल भी भाजपा को खुलेआम इस्लाम और कश्मीरियों का दुश्मन करार देते हैं। भाजपा के साथ जुड़ने वाले स्थानीय लोगों को भारतीय एजेंट कहकर ताना दिया जाता है। ऐसे सभी प्रकार के नकारात्मक प्रचार के बावजूद कश्मीर में भाजपा धीरे-धीरे अपना जनाधार बढ़ा रही है। हाल ही में उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा और बांडीपोर जिलों में संपन्न हुए जिला विकास परिषद (डीडीसी) की दो सीटों पर चुनाव के लिए हुए मतदान ने आतंक के गढ़ में कमल खिला दिया है। इससे राजनीतिक पंडित भी हैरान हैं और कह रहे हैं कि आने वाले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा कश्मीर में सबको हैरान कर सकती है।
कश्मीर में जब आतंकी हिंसा चरम पर थी, तब नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी जैसे राजनीतिक दलों के नेता भी खुलकर सामने नहीं आते थे। उनकी बैठकें भी बंद कमरों तक सीमित रहती थीं। भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए आसानी से उम्मीदवार नहीं मिलता था। वर्ष 1999 में संसदीय चुनाव के दौरान आतंकियों ने भाजपा उम्मीदवार हैदर नूरानी को मौत के घाट उतार दिया था। भाजपा को कश्मीरी हिंदू उम्मीदवारों और वोटरों पर ही निर्भर रहना पड़ता था और उसकी भागीदारी सिर्फ मतपत्र पर उम्मीदवार की फोटो और निशान तक सीमित रहती थी, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। भाजपा ने दोनों सीटों पर चुनाव तो नहीं जीता, लेकिन जो वोट मिले हैं, उनसे सब हैरान हैं। भाजपा ने पीडीपी, कांग्रेस और गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी के उम्मीदवारों को भी पीछे छोड़ा है। द्रगमुला में नेकां समर्थित एडवोकेट अमीना मजीद ने चुनाव जीता है। उन्होंने 3259 वोट प्राप्त किए। भाजपा ने इस सीट पर 877 वोट प्राप्त किए, जबकि कांग्रेस को 746 और पीडीपी समर्थित उम्मीदवार रिफ्त जान को 612 वोट मिले हैं। लगभग दो वर्ष पुरानी जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी को 1474 वोट मिले। कुपवाड़ा में सज्जाद गनी लोन के नेतृत्व वाली पीपुल्स कांफ्रेंस का मजबूत गढ़ माना जाता है, उसके उम्मीदवार शबनम रहमान को 3220 वोट मिले। वहीं जिला बांडीपोर में हाजिन- ए में जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी ने चुनाव जीता है और उसके उम्मीदवार को 2706 वोट मिले हैं जबकि भाजपा ने 387 और गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व वाली डेमोक्रेटिक आजाद पाटी को मात्र 315 वोट मिले हैं। पीपुल्स कांफ्रेंस की उम्मीदवार अतीका बेगम को 2283 वोट मिले हैं। ये दोनों सीटें और संबंधित जिले जहां लश्कर- ए-तैयबा का गढ़ माने जाते रहे हैं।